पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०१

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yó रामचरितमानस लीला सगुन जो कहहिँ बखानी । सोइ स्वच्छता करई मलहानी प्रेम भगति जो बरनि न जाई। सोइ मधुरता सुंसीतलताई ॥३॥ जो सगुण-ब्रह्म की लीला बखान 'कर कहते हैं, वही मैल [ पापj को नष्ट करनेवाली जल की निर्मलता है। प्रेमलक्षणा-भक्ति जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता, वही मीठापन और अच्छी शीतलता है ॥३॥ सो जल सुकृत-सालि हित होई । रामभगत जन जीवन साई ॥ मेधा महि गत से जल पावन । सकिलि स्त्रवन मगचलेउ सुहावन ॥४॥ वह जल पुण्य-रूपी धान के लिए हितकारी होता है और वही रामभक्त जनों का जीवना. धार है । वुद्धि रूप पृथ्वी पर प्राप्त होकर वह पवित्र सुहावना जल कानरूपी रास्ते में बटुए कर चलता है ॥४॥ भरेउ सुमानस सुथल थिराना। सुखद सीत रुचि चारु चिराना ॥५॥ सुन्दर मानस रूपी (हृदय) श्रेष्ठ स्थल में भर कर थिरोता है, पुराना होकर सुन्दर रुचिकारी, शीतल और श्रानन्द देनेवाला होता है ॥५॥ 'मानस' शब्द श्लेपार्थी है । मन और मानसरोवर दोन अर्थ निकलता है । जल पहले तालाब में पहुँच कर स्वच्छ नहीं होता , कुछ काल थिराने पर निर्मल, शीतल, सुखद और रुचिकर होता है । इस कथन में समायोक्ति है। दो०-सुठि सुन्दर सम्बाद बर, बिरचे बुद्धि बिचारि । तेइ एहि पावन सुभग सर, घाट मनोहर चारि ॥ ३६ ॥ अत्यन्त सुन्दर श्रेष्ठ सम्वाद जो बुद्धि से विचार कर रचे गये हैं, वे ही इस पवित्र शोभन सरोवर के मनोहर चार घाट है ॥३६|| शिव-पार्वती, कागभुशुण्ड गरुड़, याज्ञवल्क्य-भरद्वाज और तुलसीदास-श्रोतागण यही चारों सम्बाद हैं । क्रमशः ज्ञान, उपासना, कर्मकाण्ड एवम् दैन्य घाट चारों में कहे जाते हैं। तालाबों में प्रसिद्ध ये चार घाट होते हैं । जसे-राजघाट, पंचायतीघाट, पनिघट और गौ घाट । यहाँ भी यही क्रम जानना चाहिए । इस दोहा का अर्थ करने में विद्वानों ने खूब विस्तार किया है। चौ०-सप्त प्रबन्ध सुजग सोपाना । ज्ञान-नयन निरखत मन माना ॥ रघुपति-महिमा अगुन अबाधा । बरनब साइबर बारि अगाधा ॥१॥ सातों कांड सुन्दर सीढ़ियाँ हैं जिन्हें ज्ञान रूपी नेत्रों से निहार कर मन प्रसन्न होता है। रघुनाथजी की अपरिमित निर्गुण महिमा वर्णन करूंगा, वही इस श्रेष्ठ जल की गहराई है ॥१॥ ग्रन्थकार सातों निबन्धों को इस मानस की सौढ़ी गिनाते हैं, पर जो पाठवाँ कांड बलात् जोड़ते हैं, वे देख्ने कि उनकी करतून कविजी के संकलर से सर्वथा विपरीत है। इन