पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०१४

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1 षष्ठ सोपान, लकाकाण्ड । रथ और विशयरथ का सापक वर्णन है.। पहिया, SRIा, पताका, घोड़ा और जोतने की रस्सी ऊपर कह चुके, शेष सामग्री प्रोगे वर्णन करते हैं। ईस भजन सारथी-सुजाना । विरति धर्म सन्तोष-कृपाना ॥ दान-परसु. बुधि-सक्ति प्रचंडा । पर-भिज्ञान-कठिन-कोदंडा 180 ईश्वर का भजन अति चतुर सारथी है, वैराग्य दाह और arष तसार है। दाम भलुहा है, बुद्धि तीय साँगी है। श्रेष्ठ विज्ञान मजबूत धनुष है ॥४॥ अमल अचल मन जोन-समाना । सम-जम-नियम लिलीमुख नाना ॥ कवच अभेद निम-गुरु-पूजा । एहि सम विजय उपाय न दूजा ॥ निर्मल अचंचल वित तरकस के समान है, शम यम और नियमादि अनेक प्रकार के पाण हैं । वहाण और गुरु का पूजन अभेध (जसके भीतर कोई चीज न धुल सके) जिरह बकतर है, इसके समान विजय के लिए दूसरा उपाय नहीं है ॥४॥ सखा धरम-मय अस रथ जाके । जीतन कहँ न कतहुँ रिषु लाके ॥६॥ हे सखा । जिसके पास ऐसा धम् (रूपी-धुरा) मय रथ है, उसको जीतने के लिए कही भी शत्रु नहीं है ॥६॥ दो०--महा अजय संसार-रिपु, जीति सकइ सो बीर । जाके अस रथा होइ ढ़, सुनहु सखा भतिधीर । है मतिधीर सो सुनिए, अतिशय अजीत संसार शव को वही शूरवीर जीत सकता है, जिसके पास ऐसा मजबूत रथ होगा। प्रस्तुत वृत्तान्त ते रामण से जीतने के लिए रथ का वर्णन है, उसे न कह कर उसका प्रतिविम्बमात्र कहना 'ललित अलंकार' है। विजयरथ के बहाने रावण के जीतने की बात म कह कर संसार-शन से जीतने की बात कहना 'फैतवापति अलंकार' है। .. - सुनि प्रा बचन विभीषन, हरषि गहे पद-काज । एहि मिस मोहि उपदेसहु, राम कृपा-सुख-पुञ्ज । प्रभु रामचन्द्रती के वचन सुन कर विभीषण ने प्रसन्न हो चरण-कमलों को पकड़ लिए। उन्हों ने समझा कि कृपा और मुश के राशि रामचन्द्रजी ने इस बहाने से मुझे शिक्षा दी है। पचार दसकन्धर, इत अङ्गद हनुमान । लरत निसाचर भालु कपि, करि निज निज प्रशु आन ॥८॥ उधर से रावण ललकारता, एधर अाद हनुमान, उधर राक्षस भालू-मन्दर अपने . अपने स्वामी की दुहाई देते हुए लड़ये हैं ॥०॥