पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०१५

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वामपरितमानसे। चौ०-सुर ब्रह्मादि सिद्ध मुनि नाना । देखत रन नभ चढ़े बिमाना। हमहूँ उमा रहे तेहि सहा । देखस रामचरित रनरङ्गा ॥१॥ ब्रह्मा श्रादि देवता, अनेक सिद्ध और मुनि विमान पर बैठे आकाश से युद्ध देखते हैं। शिवजी कहते हैं-हे उमा! हम भी उनके साथ रामचन्द्रजी के लड़ाई का चरित्र देख रहे थे॥१॥ सुभट समर-रस दुहुँ दिलि. माँते । कपि-जयसील राम बल ताते ॥ एक एक सन मिरहिं पचारहि । एकन्ह एक मर्दि महि परिहि ॥२॥ दोनों शोर के योद्धा लड़ाई के रस में अतथाले हुए हैं, धन्दरों को रामचन्द्रजी का बल है इसलिए वे विजयशील हैं । एक दूसरे को ललकारते और भिड़ते हैं, एक दूसरे को धरती पर गिरा कर मसल देते हैं ॥२॥ मारहि काहि पाहि पछारहि । सीस तोरि सीसन्ह सन मारहि । उदर बिदारहि भुजा उपारहिं । गहि पद अवनि पटक मट डारहि ॥३॥ मारते हैं, काटते हैं, पकड़ कर पछाड़ते हैं, सिर तोड़ कर उन्हीं सिरों से मारते हैं । पेट फाइते हैं, भुजा उखाड़ते हैं, टाँग पकड़ कर योद्धाओं को धरती पर पटक कर फेंक देते हैं ॥३॥ निखिचर-पट महि गाड़हि भालू । ऊपर ढारि देहिँ बहु बालू ॥ बीर बलीमुख जुद्ध बिरुद्धे । देखियत बिपुल काल जनु क्रुद्धे ॥४॥ राक्षस वीरों की लाश भालू पृथ्वी में गाड़ते और ऊपर बहुत सी बालू डाल देते हैं । योचा यन्दर लड़ाई में कोधित ऐसे मालूम होते हैं मानों पसंख्या काल क्रुद्ध हुए दिखाई देते हो ॥ हरिगीतिका-कन्द । क्रुद्ध हत्तान्त समान कपि तनु, खवत सोनित राजहीं। मर्दहि निसाचर-कटक भट बलवन्स धन जिमि गाजहीं। , मारहिँ चपेटन्हि डाटि दाँतन्ह, काटि लातन्ह-मीजही। चिकहिँ भरकट-मालु छल-बल, करहिं जेहि खल छीजहीं ॥६॥ यमराज के समान क्रोधित, रक शरीर से बहते हुए बन्दर शोभित हो रहे हैं । वे बली राक्षसी सेना के वीरों का नाश करते हुए मेघ जैसे गर्जते हैं । थप्पड़ों से मारते, डाटते, दांतों काटते और लातों से कुचलते हैं। वानर-भालू चिघाइते और छल-बल करते हैं जिस से राक्षसों का नाश हो ॥६॥ धरि गाल फारिहिं उर बिदारहि, गल अँतावरि मेलहीं। प्रहलाद-पति जनु बिधिध तनु धरि, समर-अङ्गन खेलही ।