पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०२३

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ENE रामचरित मानस। में बिजली चमक रही है। हाथी, रथ और घोड़े का भीषण चीत्कार ऐसा मालूम होता है, मानों मेध भयङ्कर गर्जना करते हैं। ॥२॥ कपि लङ्गुर बिपुल नम छाये। मनहुँ इन्द्रधनु उये सुहाये ॥ उठइ धूहि मानहुँ जल धारा । बान बुन्द भइ वृष्टि अपारा || चान की पूछ श्राकाश में ऐली छा रही है, मानो सुहावना इन्द्र-धनुष उदय हुआ हो। धूल का उमड़ना मानों जलधारा है, वाण रूपी अपार बून्दों की वर्षा हो रही है ॥३॥ दुहुँ दिसि पर्वत करहिँ प्रहारा । बज्रपात जनु बाहिँ बारा ॥ रघुपति कोपि बान झरि लाई । घायल मे निसिचर समुदाई ॥४॥ दोनों ओर से पहाड़ों के प्रहार किये जाते हैं, वही माने बार यार बिजली का गिरना है। रघुनाथजी ने क्रोध कर के बाणों की झड़ी लगा दी, जिससे असंख्यों राक्षस पायल लागत बान चोर चिक्करहौं । धुर्मि घुर्मि जहँ तह महि परहीं। सावहिँ सैल जनु निर्भर बारी । सोनित-सरि कादर भयकारी ॥५॥ बाण लगने से वीर जिग्घाड़ते हैं और घूम घूम कर जहाँ तहाँ धरती पर गिरते हैं। उनके शरीर से रक बहता है, वह ऐसा मालूम होता है मानों पर्वतों से झरना का पानी बहता हो, खून की नदी कादरों को भय उत्पन्न करनेवाली है ॥५॥ हरिगीतिका-छन्द। कादर भयङ्कर रुधिर सरिता, चली परम-अपावनो। दोउ कूल-दल रथ-रेस चक्र, अवर्त्त बहति भयावनी । जलजन्तु गज-पदचर-तुरग-खर, बिबिध बाहन को गनै । सर-सक्ति-तोमर-सर्प चाप-तरङ्ग चर्म-कमठ घने ॥ १३ ॥ कारों को भयभीत करनेवाली अत्यन्त अपवित्र खून की भयावनी नदी बहती हुई चली । दोनों दल किनारे हैं, रथ रेती है और पहिये भंवर हैं। हाथी, पैदल, घोड़ा, गदहा आदि अनेक प्रकार की सवारियाँ जिनकी गणना कौन कर सकता है वे ही जल-जीव हैं। बाण, साँगी और माता सर्प हैं, धनुष लहरे तथा ढाल मसंख्यों कछुए हैं ॥ १३ ॥ दो०-बीर परहिँ जनु तीर तरु, मज्जा बहु बह फेन । कादर देखि डराहिँ तेहि, सुभटन्ह के मन चेन ॥८॥ योडागिरते हैं, वे ऐसे मालूम होते हैं मानों किनारे के वृक्ष ढहते हो। बहुत सी चर्षी बहती है वह मानो फेन है उसे देख कर कादर डरते हैं और योदाओं के मन में प्रसन्नता होती है॥७॥ C