पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. रामचरित मानस । ५२ सुकृती साधु नाम गुन गानो । ते विचित्र जल बिहँग समाना। सन्तसभा चहुँ दिसि अँबराई । वडा रितु बसन्त मम गाई ६५ पुण्यात्मा सज्जनों के नाम और गुणों का गान, इसके जलविहंग के समान अद्भुन पक्षी हैं । सम्मों की मण्डलो मानस के चारों ओर श्राम का वगीया है और श्रद्धा वसन्त ऋतु के समान वणिन है ॥६॥ भर्गात निरूपन विविध विधाना । छमा दया दम लता विताना ॥ सम जम नियम फूल फल ज्ञाना । हरि पद रति रस बेवबाना 31 अनेक प्रकार भक्ति का वर्णन क्षमा, दया और इन्द्रियविग्रह का श्रादेश सन्न रूपी प्राम के वृक्ष पर लना-पण्डप तना है!' समदर्शिता विपयों से संयम उपासनादि के नियम फूल तथा शान फन रूप है, वेद कहते हैं कि भगवान के चरणों की प्रनि ही रस रूप है ।। जैसे वृतों पर वेलियां फैल कर चिनान रूप होकर साहनी है, वैसे सन्तों में क्षमा, दशा, दम और भकिनिरूपण शोभन य लनायें हैं। सभा की प्रति में 'क्षमा दया छुम लता विताना और हरि पद रस बर वेद वखाना' पाठ है। औरउ कथा अनेक प्रसङ्गा । तेइ सुरु पिक बहु अरन विहङ्गा ॥८ और भी अनेक प्रसङ्ग को कथाएँ जो रामचरितमानस में-वर्णन हुई हैं वे. नाना रंग के तेति और कोकिल पक्षी हैं ॥८॥ दो०-पुलक बाटिका-बाग धन, सुख सुविहङ्गविहारु । मालो सुमन सनेह जल. जीवन लोचन चारु ॥ ३७॥ हप से रोमाज होना वाटिका. वाग और वन है, सुन्दर पक्षियों का प्रसन्नता-पूर्वक विवरण सुख है। मन रूपी सुहावना माली स्नेह रूपी जल और मनोहर नेत्र रूपी पात्रों से सोचता है ॥३॥ एक पुलको वाटिका, वाग और वन वर्णन करना 'द्वितीय रह लेख अलंकार' है। चौ०-जे गावहिं यह चरित संभारे । तेइ एहि ताल चतुर रखवारे ॥ सदा सुनहिँ सादर नर नारी। तेइ सुर बर मानस अधिकारी ॥१म जो इस चरित को संभाल कर शुद्धताक गान करते हैं, वे ही इस सरोवर के चतुर रक्षा हैं । जो स्त्री या पुरुष आदर के साथ निरन्तर सुनते हैं, वे ही मानस के अधिकारी श्रेष्ठ देवता रूप हैं ॥१॥ अति-खल जे विषयी बक कागा । एहि सर निकट न जाहिँ अभागा । सम्बुक भेक सिवार समाना। इहाँ न विषय कथा-रस नोना ॥२॥ जो अत्यन्त दुष्ट अभागे विषयी याला और कौए के समान हैं, वे इस सरोवर के पास नहीं जाते 1 घोत्रा, मेढक और सेवार के समान यहाँ विषय की वार्ता नायिका भेद मारि नहीं है, यहाँ वो नाना प्रकार हरिकीर्तन का आनन्द है ||२||