पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०३३

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YE रामचरित मानस । और नागों से विरोध किया। शादर के साथ शिवजी को सिर चढ़ाया, (उसके बदले में) एक एक के करोड़ पाया ॥३॥ कट कट कर तेरे सिर करोड़ों बार नवीन जमे, यह शङ्करजी की कृपा से हुआ है। यह व्यज्ञार्थ और वाच्यार्थ घराबर होने से तुल्यप्रधान गुणीभून व्यंग है। तेहि कारन खल अबलगि बाँच्यौँ । अब तव काल सीस पर नाँच्यो । राम-बिमुख साठ चहसि सम्पदा । अस कहि हनेसि माँझ उर गदा ॥१॥ अरे दुष्ट ! इसी कारण से अबतक बचता श्राथा है, अब काल तेरे सिर पर नाच रहा है। हे मूर्ख रामचन्द्रजी से विमुख हो कर' सम्पत्ति (कल्याण), चाहता है ? ऐसा कह कर छाती में गदा मारा ॥४॥ हरिगीतिका-छन्द। उर माँक गदा प्रहार घोर कठोर लागत महि पखो। दस-बदन-सानित-खवत पुनि सम्भारि धायो रिस भयो । दोउ भिरे अतिबल मल्ल युद्ध बिरुद्ध एक एकहि हन । रघुबीर-बल दर्पित धिमापन, घालि नहिँ ता कह गनै ॥२०॥ हत्य में कठिन भीषण गदा की चोट लगते हा धरती पर गिर पड़ा। दस मुखों से खून बहने लगा, फिर सम्भल कर क्रोध से भरा हुआ दौड़ा। दोनों महाग्ली मल्लयुद्ध में भिड़ गये, वैरभाव से एक दूसरे को मारने लगे। रधुनाथजी के पल से गर्वित विभीषण उसे मार डालने में कुछ नहीं गिनते हैं ॥ २० ॥ दो०-उमा सिमीपन रावहि, सननुख चितव कि कोउ । सो अब भिरत काल ज्याँ, श्रीरघुबीर प्रभाउ ॥६॥ शिवजी कहते हैं-हे उमा! क्या विभीषण कभी रावण के सामने देख सकता था? (कदापि नहीं ) श्री रघुनाथजी के प्रताप से वही काल की तरह अब भिड़ रहा है ! icon समावी प्रति में भिरत सा काल समान'अब पाठ है। श्री०-देखा खमित बिभीषन भारी । धायउ हनूमान गिरि-धारी। रथ तुरङ्ग सारथी निपाता । हृदय माँझ तेहि मारेसि लाता ॥१॥ विभीषण' को पहुंत थका हुश्रा देग्न कर हनूमानजी पहाई लिये हुए दौड़े। उसके रथ, घोड़े श्री सारथी का नाश कर छाती में लात माप॥१॥ ठाढ़ रहा अति-कम्पित गाता । गयउ बिभीषन जहँ जन-त्रांतो ॥ पुनि रावन तेहि हतेउ पचारी । चलेउ.गगन कपि पूँछ पसारी ॥२॥:- काँपते हुए शरीर से (रावण) खड़ा रहा, जहाँ सेवकों के रक्षक रामचन्द्रजी थे.विभीषण