पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०५

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रामचरित मानस । ५४ करि न जाइ सर मज्जन पाना । फिरि आवइ समेत अभिमाना। जाँ बहोरि कोउ पूछन आवा । सर निन्दा करि ताहि बुझावा ॥२॥ सरोवर में स्नान और जलपान किया नहीं जाता, इससे अभिमान सहित वह लौट पाता है। फिर यदि कोई पूछने आया तो मानस की निन्दा करके उसको समझाता है ॥२॥ मानसरोवर में जानेवाले और रामचरितमानस में आनेवाले दोनों यात्रियों में पूरी पूरी एकरूपता दिखाने का भाव है। जैसे बिना श्रद्धा के मानसरोवर में पहुँचकर शोत के भय से स्नानादि न कर लौट आता और निन्दा करता है। वैसे श्रद्धाहीन प्राणी रामचरितमानस में दैवयोग से आ जाय तो मूर्खता रूपी जाड़ा छूटना नहीं, न मन लगा कर सुनता है, न समझता है, कोरा लौट जाता है । जप कोई पूछता है कि कहो क्या सुना तय मानस को निन्दा कर उसे समझाता है, सुना क्या ? खाक ! उसमें रूखी पुरानी बाते भरी हैं। न नवयौवना वाला की रसीली कथा है और न कोई तिलिस्म का ही वर्णन है, जिससे मनारजन हो। सकल विघ्न ब्यापहिँ नहिँ तेही । राम सुकृपा बिलोकहिं जेही ॥ सोइ सादर मज्जन सर करई । महाघोर त्रय ताप न जरई ॥३॥ पर ये सम्पूर्ण विघ्न उसको नहीं व्यापते जिसे रामचन्द्रजी सुन्दर कृपा की दृष्टि से देखते हैं। वही आदर-पूर्वक मानस में स्नान करता है और महा भयङ्का तोनी तापों से नहीं जलता ॥३॥ । दैहिक दैविक और भौतिक यही तीन प्रकार ते नर यह सर तजहिँ न काऊ। जिन्ह के राम चरन भल भाऊ ॥ जो नहाइ चह एहि सर भाई । सो सतसङ्ग • करउ मन लाई ॥४॥ वे मनुष्य इस मानस को कभी नहीं छोड़ते, जिन्हें रामचन्द्रजी के चरणों में अच्छी प्रीति है। भाइयो ! जो कोई इस रामचरितमानस में स्नान करना चाहे वह मन लगा कर सत्सङ्ग करे॥४॥ जिस प्रकार से उत्पन्न हुश्रा और जैसा मानस है, इन दोनों बातों का विवेचन यहाँ पर्यन्त हुना, वह नीचे की चौपाई 'अस मानस' से प्रकट है । श्रय जिस प्रकार जगत में फैला आगे ४३ दोहा तक उसके सम्बन्ध में कहेंगे । गुटका में जिन्ह के राम'चरन भल चाऊ पाठ है। अस मानस मानस चष चाही । भइ कबि बुद्धि बिमल अवगाही ॥ भयउ हृदय आनन्द उछाहू । उमगेउ प्रेम प्रमोद प्रबाहू ॥५॥ ऐसे मानस को धन्तःकरण के नेत्रों से देखने पर और उसमें स्नान करने से कवि की बुद्धि निर्मल हो गई । हृदय में प्रानन्द और उत्साह हुआ जिससे प्रेम एवम् हर्ष का स्रोत उमड़ पड़ा।॥५॥ 'मानस' शब्द दो बार आया है किन्तु अर्थ दोनों का भिन्न भिन्न है एक रामचरित- मानस का बोधक और दूसरा अन्तःकरण (हृदय) का शापक होने से यमक अलंकार' है! ताप हैं।