पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०६८

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। षष्ठ सोपान, लङ्काकाण्ड । ९९३ बहुरि राम जानक्षिहि देखाई । जमुना कलिमल-हरनि सुहाई ॥ पुनि देखी सुरसरी पुनीता । राम कहा मनाम कर सीता ॥३॥ फिर रामचन्द्रजी ने पापों की हरनेवाली सुहावनी यमुना नदी जानकीजी को दिखायी। तदनन्तर पवित्र गहाजी को देखा, रामचन्द्रजी ने कहा-हे सीतो! गाजी को प्रणाम करो ॥ ३॥ तीरथपति पुनि देखु प्रयागा । निरखत जनम-कोटि-अघ भागा ॥ देखु परम-पावनि पुनि बेनी। हरनि सोक हरिलोक-निसेनी ॥४॥ फिर तीर्थराज प्रयाग को देखो, जिनके दर्शन से करोड़ो जन्मों के पाप भाग जाते हैं। पुनः अतिशय पुनीत त्रिवेणी (सद्गम) को देखो, जो शोक की हरनेवाली और विष्णुलोक (बैकुण्ठ) की सीढ़ी है ॥४॥ पुनि लखु अवधपुरी अति पावनि। त्रिबिधि-ताप भव-रोग नसावनि॥५॥ फिर अत्यन्त पवित्र श्रायोपपुरी को देखो, जो तीनों ताप (आध्यातिक, आधिदैविक आधिभौतिक) और संसारी रोगों (जन्म, मृत्यु, गर्भवास) को हरनेवाणी है ॥५॥ दो-सीता सहित अवध कह, कीन्ह कृपाल प्रनाम । सजल-नयन सन-पुलकित, पुनि पुनि हरषित राम । कृपालु भगवान सीताजी के सहित आयोध्यापुरी को प्रणाम किया। आँखों में जल भर आया: शरीर पुलकित हो गया, रामचन्द्रजी वारम्बार हर्षित हो रहे हैं। ,' पुनि प्रभु आइ त्रिवेनी, हरषित मज्जन कीन्ह । कपिन्ह सहित विप्रन्ह कह, दान विविध बिधि दीन्ह ॥१०॥ फिर प्रभु रामचन्द्रजी ने आकर प्रसन्नता से त्रिवेणी में स्नान किया। वान के सहित प्राह्मणों को अनेक प्रकार के दान दिये ॥१२० ॥ 'कपिन्ह सहित दोनों ओर लगता है अर्थात् चन्द्रों सहित स्नान किये और कीस समेत ब्राह्मणों को नाना तरह के धान दिये 'देहरी दीपक अलंकार' है। चौ०-प्रभु हनुमन्तहि कहा बुझाई । घरि बटु-रूप अवधपुर जाई ॥ भरतहि कुसल हमारि सुनायहु । समाचारलेइतुम्हचलि आयहु॥१॥ प्रभु रामचन्द्रजी ने हनूमानजी को समझा कर कहा--हे पवनकुमार ! तुम ब्रह्मचारी का रूप धारण कर को भायोध्यापुरी में जानो भरत को हमारी कुशलता सुनाना और उनका समाचार ले कर चले नाना ॥१॥ 'बुझाई शब्द में व्या है कि जा कर देखना ऐश्वर्य सम्पन्न बाप दादों का राज्य किसके मन को नहीं बिगाड़ता ? सन-वश भरत राज्यार्थी तो नहीं हो गये । ब्राह्मण का कप मालीक है और हनूमानजी ब्रह्मचारी वेष धारण करने में बड़े प्रवीण हैं, इसलिए वटुरूप लेने को स्वामी . १२५