पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०७०

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229 पष्ट सोपान, लङ्काकाण्ड । अब कुसल पद-पङ्कज शिलाकि बिरजि-सङ्कर-सेव्य जे। सुख-धाम पूरन-काम् राम नमानि राष नमामि ते ॥३८॥ सुजान लक्ष्मीकान्त कृपानिधान राजा रामचन्द्रजी ने हदय से लगा लिया और बिल्कुल पास में बैठा कर कुशल पूछा, वह विनती करने लगा। हे रामचन्द्रजी जिन चरण-कमलों की सेवा ब्रह्मा और शिवजी करते हैं, उन्हें देख कर अप मेरा सब तरह कुशल-मंगल है। हे सुख के 'स्थान पूर्णकाम रामचन्द्रजी! आप को मैं धार बार नमस्कार-प्रणाम करता हूँ ॥३॥ निषादराज ने कुशल का कारण बहुत ही मनोहर कहा काव्यलिंग अलंकार' है। सब भाँति अधम निषाद लो हरि, भरत ज्याँ उर लाइयो। मति-मन्द तुलसीदास सो प्रक्षु, माह-बस बिसराइयो । यह रावनारि चरित्र पावन राम-पद-रति-प्रद सदा । कामादि-हर विज्ञान-कर, सुर सिद्ध मुनि गावहिँ मुदा ॥३९॥ सब प्रकार नीच निषाद उसको भगवान ने भरतकी तरह हदय से लगा लिया! तुलसी- दासजी कहते हैं कि मोह के अधीन हो कर, अरे नीच-बुद्धि! तू ने उन स्वामी को भुला दिया। रावण के वैरी रामचन्द्रजी का यह चरित रामचन्द्रजी के चरणों में सदा प्रीति का देने वाला है। काम प्रादि दोषों का हरनेवाला और विज्ञान उत्पन्न करनेवाला है, इसको देवता, सिद्ध और मुनि प्रaar से गान करते हैं ॥३॥ दो-समर बिजय रघुबीर के, चरित जे सुनहि सुजान। विजय-बिबेक-विभूति-नित, तिन्हहि देहि भगवान । जो चतुर प्राणी रघुनाथजी के संग्राम सम्बन्धी विजय चरित्र को मुनगे उनको भगवान रामचन्द्रजी सदा विजय, विचार और ऐश्वर्य्य देंगे। यह कलिकाल भलायतन, मन करि श्रीरघुनाथ-नाम तजि, नाहि न आन अधार ॥१२१॥ हे मन! तू विचार कर देख, यह कलिकाल पापों का पर है! इसमें श्रीरघुनाथजी के नाम को छोड़ कर दूसरा कोई सहारा (पाप मुक्त करने का नहीं है ॥१२१॥ इति श्रीरामचरितमानसे सकल कलिकलुष विध्वंसने विशुद्ध सन्तोष सम्पादनो नाम षष्ठः सोपान: समासः। इस प्रकार समस्त कलि-पावक संहारी श्रीरामचरितमानस में विमल विज्ञान सम्पादन नाम का यह छठा सोपान समाप्त श्रा! शुभमस्तु मङ्गलमस्तु देखु विचार। ..