पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०८

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प्रथम सोपान, बालकाण्डै । सानुज राम-बिबाह-उछाहू । सो सुन उमग सुखद सब कोहू ॥ कहत सुनत हरषहि पुलकाहीं। ते सकृती मन मुदित नहाहीं ॥३॥ छोटे भाइयों के सहित रामचन्दजी के विवाह का जो उत्साह है, वह नदी का मंगल- कारी उमड़ना; सब को श्रानन्द देनेवाला है । जो प्रसन्न होकर कहते हैं और सुन कर पुलका- यमान होते हैं, वे पुण्यात्मा प्रसन्न मन स्नान करते हैं॥३॥ राम तिलक हित मङ्गल साजा । परब जोग जनु जुरेउ समाजा ॥ काई , कुमतिः केकई केरी । परी जासु फल बिपति घनेरी ॥४॥ रामचन्द्रजी के राजतिलक के लिए मांगलीक साज सजे, जिसमें जन-समूह इकट हुए, वही मानों पर्वयोग स्नान का मुहूर्त जैसे रामनामी कार्तिक की पूणिमा शादि है । केकई की दुखि काई है जिसके फल से गहरी विपत्ति पड़ी॥४॥ दो०-समन अमित उतपात सब, भरत चरित जप जाग । कलि अघ खल अवगुन कथन, ते जल मल बक काग ॥४१॥ बेपरिमाण सब उत्पादों को नाश करने के लिए भरतजी का चरित्र जप-यज्ञ है। कलि के पाप और दुष्टों के दोषों का वर्णन पानी की मैल बगुले और कौए हैं ॥४१॥ चौ०-कीरति सरित छहूँ रितु रूरी । समय सुहावनि पावनि भूरी ॥ हिम हिमसैल-सुता सिव ब्याहू । सिसिर सुखद् प्रभु-जनम-उछाहू ॥१॥ यह कीर्तिपो नदो बड़ी ही पवित्र और छहों ऋतुत्रों के समय में सुन्दर सुहावनी लगती है। हिमालय की कन्या पाती और शिवजी का विवाह हेमन्तऋतु है और प्रभु रामचन्द्रजी के जन्म का उत्साह सुखदाई शिशिर ऋतु है ॥१॥ बरनब राम विवाह समाजू । सो मुद-मङ्गल मय रितुराजू ॥ ग्रीषम दुसह राम-बन-गवर्ने । पन्थ-कथा खर-आतप-पवनू ॥२॥ रामचन्द्रजी के विवाह का उत्सव वर्णन काँगा, वह आनन्द मङ्गलरूप ऋतुराज वसन्त है । रामचन्द्रजी की वनयात्रा असहनीय. ग्रीष्मऋतु है और रास्ते का वृत्तान्त कथन कठिन धूपं और लू है ॥२॥ निसाचर रारी । सुर-कुल-सालि सुमङ्गल-कारी ॥ राम-राजसुख बिनय बड़ाई । बिसद सुखद सोइ सरद सुहाई ॥३॥ ॥ राक्षसों के साथ भीषण युद्ध वर्णन वर्षा ऋतु है । जो देवकुल रूपी धान के लिए सुन्दर भंगलकारी है। रामचन्द्रजी के राज्यकाल का सुख, अच्छी नीति और बड़ाई सुहावनी सुखदायिनी और निर्मल, शरदऋतु है ॥३॥ अगहने पूस हेमन्त, माध-फाल्गुण शिशिर, चैत्र वैषाख वसन्त, ज्येष्ठ अषाढ़ ग्रीम, श्रावण-भादों वर्षा, पाश्विन-कार्तिक मास शरदऋतु का भोग काल हैं। बरषा घोर 5