पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०८६

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सप्तम सोपान, उत्तरकाण्ड । १००६ करहि आरती आरति-हर के। रघुकुल-कमल-बिपिन दिनकर के । पुर सेोमा सम्पति कल्याना । निगम सेष सारदा बखाना ॥ ४ ॥ रघुकुल रूपी कमल-वन के सूर्य, दुःखहारी रामचन्द्रजी की आरती करती हैं। मगर को शोभा, सम्पत्ति और कल्याण वेद, शेष, सरस्वती बखान करते हैं nen तैउ यह चरित देखि ठगि रहहीं। उमा तासु गुन नर किमि कहही ॥५॥ वे भी इस चरित को देख कर मोहित हो जाते हैं, शिवजी कहते हैं- हे उमा! उनके गुणों को मनुष्य कैसे कह सकते हैं ? ॥५॥ दो-नारि कुमुदिनी अवध सर, रघुपति बिरह दिनेस । अस्त भये' बिगलित भई, निरखि राम राकेस ॥ अयोध्या रूपी तालाब में स्त्री रूपी कमोदिनी रघुनाथजी के वियोग रूपी सूर्य के अस्त होने से रामचन्द्रजी रूपी पूर्ण चन्द्रमा को देख कर खिल उठी। होहि सगुन सुभ मिविध बिधि, बोजहिं गगन निसान । पुर नर नारि सनाथ करि, भवन बले अगवान ॥६॥ नाना प्रकार के शुभ शकुन हो रहे हैं और भाकाश में नगारे पजते हैं । नगर के स्त्री पुरुषों को समाथ करके भगवान महल की ओर ले | चौ०-प्रभु जानी कैकई लजानी । प्रथल तासु गृह गये भवानी ॥ ताहि प्रबोधि बहुतं सुख दीन्हा। पुनि निज भवन गवन प्रभु कीन्हा॥१॥ शिवजी कहते हैं-हे भवानी ! मभु रामचन्द्रजी ने जाना कि केकयो लज्जित हुई है, पहले उसी के मन्दिर में गये। उसको समझा बुझा कर बहुत सुख दिया, फिर प्रभु ने अपने घर को भोर गमन किया ॥१॥ कृपासिन्धु निज अनिदर गये । पुर नर नारि सुखी सब भये ।। गुरु बसिष्ठ द्विज लिये बोलाई । आज सुघरी सुदिन सुभदाई ॥२॥ कृपासिन्धु रामचन्द्रजी अपने महल में गये, नगर के सब स्त्री-पुरुष सुखी हुए ( केकयी के मन्दिर में जाने से लोगों को शङ्का हुई, जब सकुशल निकल कर अपने गृह में गये तय पह सन्देह दूर हो गया इससे सुखी होना कहा) । गुरु वशिष्ठमी बामणों को बुलवा लिये और उनसे कहा कि आज शुभदायक सुन्दर मुहूर्त और अच्छा दिन है ॥२॥ सब द्विज देहु हरषि अनुसासन । रामचन्द्र बैठहिँ सिंहासन ॥ मुनि बसिष्ठ के बचन सुहाये । सुनत सकल विप्रन्ह अति भाये ॥३॥ के सुहावने वचन सुन कर समस्त ब्राह्मणों को बहुत अच्छे लगे ॥३॥ > सब ब्राह्मण प्रसन्न हो कर पाशा दो तो रामचन्द्र राज्यसिंहासन पर बैठे । वशिष्ठ मुनि . १२७