पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०९७

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। रामचरित मानस। .१०१८ सम्बन्धा भयों को रौंदनेवाली है। महाराज के कल्याणमय राज्याभिषेक को सुनते ही मनुष्य वैराग्य और शान पायेगे ॥१॥ केवल राज्योत्सव की पवित्र कथा सुनते ही अलभ्य लाभ वर्णन करना कि मनुष्य ज्ञान वैराग्य पायेंगे 'द्वितीय विशेष अलंकार' हैं। जे सकाम नर सुनहिँ जे गावहिं । सुख सम्पति नाना विधि पावहि । सुरु-दुर्लभ सुख करि जग माहीं । अन्तकाल रघुपति-पुर जाहीं ॥२॥ जो मनुष्य कामना के सहित सुनते हैं अथवा जो कहते हैं, वे नाना प्रकार के सुख और सम्पति को पाते हैं । देवताओं को दुर्लभ सुख संसार में भोग कर अन्तकाल में रघुनाथजी के लोक ( वैकुण्ठ) को जाते हैं ॥२॥ सुनहि बिमुक्त बिरत अरु बिपई। लहहिँ भगति गति सम्पति नई ॥ खगपति रामकथा मैं बरनी । स्वमति विलास त्रास दुख हरनी ॥३॥ जीवन्मुक्त, वैराग्यवान और विषयी सुनते हैं, वे नवीन भक्ति, मोक्ष तथा सम्पदा पाते हैं । कागभुशुण्डजी कहते हैं- हे खगनाथ । मैं ने पास और दुःख को हरनेवाली रामकथा अपनी बुद्धि के विकासानुसार वर्णन की है ॥३॥ पहले विमुक्क, विरत और विषयी का नाम लेकर उसी क्रम से फल गिनाना कि भक्ति, मोक्ष और सम्पत्ति पाते हैं अर्थात् विमुक्त-भक्ति, विरत गति और विषयी सम्पत्ति 'यथासंख्य अलंकार है। बिरति बिबेक भगति दृढ़ करनी । मोहनदी . कहँ सुन्दर तरनी ।। नित नव मङ्गल कोसलपुरी। हरषित रहहिं लोग सब कुरी ॥४॥ वैराग्य, शान और भक्ति को रद करनेवाली है, मोह रूपी नदी के लिये सुन्दर नौका रूपिणी है। अयोध्यापुरी में नित्य नये मङ्गल होते हैं और सब लोग मादा-पूर्वक प्रसन्न रहते हैं ॥४॥ कुरी' शब्द वंश और मर्यादा का पर्यायी है, इसलिये सभी कुटुम्बवाले प्रसन्न रहते हैं. ऐसा अर्थ भी किया जाता है। लित नइ प्रीति राम-पद-पङ्कज । सबकेजिन्हहिँनमंतसिवमुनि अज॥ मङ्गन बहु प्रकार पहिराये । द्विजन्हदान नाना विधि पाये ॥५॥ रामचन्द्रजी के चरण कमलों में सव को नित्य नई प्रीति होती है, जिन चरणों को शिवजी, मुनि और ब्रह्मा नमस्कार करते हैं। मगनों को बहुत तरह का पहिरावा दिया गया और ब्राह्मणों ने नाना प्रकार के दान पाये ॥५॥ दो-ब्रह्मानन्द मगन कपि, सब के प्रभु-पद प्रीति । जात न जाने दिवसं तिन्ह, गये मास षट बीति ॥१॥ सब वन्दरों के हृदय में रामचन्द्र जी के चरणों में प्रीति है, वे ब्रह्मानन्द में मन्न उन्होंने दिन जाते नहीं जाना और छे महीने बीत गये ॥ १५॥