पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/११०४

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सप्तम सोपान, उत्तरकाण्ड । १०२ चौ०-भूमि सप्तसागर मेखला । एक भूप रघुपति कोसला ॥ भुवन अनेक राम प्रति जासूं । यह प्रभुता कछु बहुत न तासू ॥१ सातों समुंद्र रूपी करधनी के बीच की भूमि अर्थात् सात द्वीप के अकेले कौशलेन्द्र रघुनाथजी राजा हैं। जिनके एक एक रोम में असंख्यों ब्रह्माण्ड लटके हैं, उनके लिये यह महिमा कुछ अधिक नहीं है ॥२॥ पहिले यह कहना कि सा जीप के रधुनाथजी राजा हैं। फिर दूसरी बात कह कर प्रथम अपनी ही कही बात का निषेध करना 'उक्ताशोप अलंकार' है । लातों द्वीप का राज्य बड़ा आधार रूप है और रामचन्द्रजी की प्रभुता उससे अधिक प्राधेय रूप है। बड़े आधार. से भी माधेय को बड़ा कहना 'प्रथम अधिक बलकार' है। दोनों समप्रधान हैं। सो महिमा. समुझत प्रभु केरी । यह बरनत हीनता घनेरी। सोउ महिमा खगेस जिन्ह जानी। फिरि एहि चरित तिन्हह रति मानी। प्रभु रामचन्द्रजी की वह महिमा समझते हुए और यह कहते (कि वे सात द्वीपों के राजा हैं) बड़ी हीनता है। कागभुशुण्डजी कहते हैं--हे जगराम ! उस महिमा को जिन्हों ने जाना है, फिर वे भी इस (सगुण) चरिध में प्रीति मानते हैं ॥२॥ सोउ जाने कर फल यह लीला । कहहि महा' मुनिबर दम-सीला राम-राज कर सुख सरूपदा । बरनि न सका फनीस सारदा ॥३॥ उस महा महिमा के जानने का फल यह चरित्र है, ऐसा बड़े बड़े जितेन्द्रिय मुनिराज कहते हैं। रामराज्य का सुख और सम्पत्ति शेषनाग तथा सरस्वती नहीं वर्णन कर सकती ॥२॥ सब उदार सब पर-उपकारी । बिम चरन सेवक नर नारी ॥ एक नारिब्रत रत लब झारी । ते मन बच क्रम प्रति हितकारी। सय स्त्री-पुरुष उदार और सभी परोपकारी हैं.और ब्राह्मणों के चरणों के सेवक हैं। सब पुरुषमात्र एक स्त्री-प्रतवाले हैं और स्त्रियाँ मन, वचन, कर्म से (पतिवता) पति की हित- कारिणी हैं ॥४॥ दो०--दंड जतिन्ह कर भेद जह, नर्तक त्य-समाज। जीतहु मनहूँ सुनिय अस, रामचन्द्र के राज ॥२२॥ रामचंद्रजी के राज्य में दण्ड सन्यासियों के हाथ में और भेद नाचनेवाले तथा नाच को मण्डली में देख पड़ता है। जीतो' यह शब्द मन के लिये सुनने में आता है ॥२२॥ साम, दान, दण्ड और भेद राज्य-प्रबन्ध में शन को जीतने के लिये चार प्रकार 'नीति वर्ती जाती हैं | सम-राज्य में दण्ड और भेदनीति का लेश नहीं है, केवल नाममात्र को आश्रम की मर्यादा के लिये यती हाथ में दरार रखते हैं और भेद केवल नृत्य-मण्डली में सुर ताल का देखा जाता है । शत्रु के जीतने का उद्योग नहीं, मनको जीतने की बात सुनाई पड़ती है। इन सीनो धर्मों को अपने स्थान से हटा कर दूसरे स्थान में स्थापन करना 'परिसंख्या अलंकार' 3