पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/११०७

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१०२८ रामचरित मानस । चा०-सेवहि सानुकूल सब भाई । राम-चरन रति अति अधिकाई ॥ प्रनु सुख कमल बिलोकत रहही। शबहुँ कृपाल हमहिँ कछु कहहीं ॥१॥ सब भाई प्रसता के साथ सेवा करते हैं, उनकी रामचन्द्रजी के चरणों में बड़ी अधिक प्रीति है। प्रभु के मुखारविन्द को निहारते रहते हैं कि कृपालु फभी हमें कुछ करने को कहें ॥१॥ ' राम कहिँ सातन्ह. पर प्रीती । नाना आँति सिखावहिँ नीती ॥ हरषित रहहिँ नगर के लोगा। करहिँ सकल सुर-दुर्लभ भागा ॥२॥ रामचन्द्रजी भाइयों पर प्रेम करते हैं और उनको नाना प्रकार के सदाचार सिखाते हैं। नगर के लोग प्रसन्न रहते हैं और सम्पूर्ण देवताओं को दुर्लभ भोग-विलास करते हैं ॥२॥ अहनिसि निधिहि अनावत रहहीँ । श्रीरघुबीर-चरन रति चहहीं ॥ दुइ सुत । सुन्दर सीता जाये । लक कुस बेद पुरानन्हि गाये ॥३॥ श्रीरधुनाथजी के चरणों में प्रेम चाहते हैं, इसलिये दिन रात ब्रह्मा को मनाते रहते हैं। सीताजी ने लव कुश नाम के दो पुत्र उत्पन्न किये, जिनकी कीर्ति वेद पुराणों ने गाई है ॥ ३ ॥ दोउ बिजई बिनई गुन मन्दिर । हरि प्रतिबिम्ब मनहुँ अति सुन्दर ॥ दुइ दुइ सुत सब वातन्ह केरे । अये रूप गुन सील घनेरे ॥४॥ होनों पुत्र विजयी, बड़े नीतिश और गुणे के स्थान हुए, ऐसा मालूम होता है मानों भगवान् रामचन्द्रजी के वे अत्यन्त सुन्दर चित्र हैं, । शोभा, गुण और शील के राशि दो दो पुत्र सब भाइयों के हुए ॥४॥ दो ज्ञान गिरा गोतीत अज, माया भन गुन पार । सोइ सञ्चिदानन्द धन, कर नर चरित उदार ॥२५॥ जो शान, वाणी और इन्द्रियों से निर्लेप, अजन्मे, माया, मन तथा गुणों से परे हैं। वही सचित्भ्रानन्द के राशि परमात्मा श्रेष्ठ मनुष्य लीला करते हैं ॥ २५ ॥ ब्रह्म सच्चिदानन्द जो कभी जन्म नहीं लेते उन्हें मनुष्य, चरित करनेवाला कहना 'विरोधाभास अलंकार' है। चौ-प्रातकाल सरजू करि मज्जन । बैठहिँ सभा सङ्ग द्विज सज्जन ॥ बेद पुरान बसिष्ठ बखानहिं । सुनहिं राम जापि सबजानहिँ ॥१॥ सपेरे सरयू में स्नान करके ब्राह्मण और सज्जनों के साथ सभा में बैठते हैं । वशिष्ठजी वेद पुराण बखानते हैं और रामचन्द्रजी यद्यपि सब जानते हैं तो भी प्रीति के साथ सुनते हैं ॥१॥