पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/११०८

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सनम सोपान,उत्तरकाण्ड । १०२ अनुजन्ह सज्जुत भोजन करहीं। देखि सकल जननी सुख भरहीं । परत सत्रुहन दूनउ भाई। सहित पत्रन-सुत उपबल जाई ॥२॥ छोटे भाइयों के साथ भोजन करते हैं, देख कर समस्त माताएँ सुख ले अघा जाती हैं। भरतु और शत्रुहन दोनों भाई पवनकुमार के सहित धनीचे में जाते हैं ॥२॥ यूझहिँ बैठि राम गुन गाहा । कह हनुमान सुमति अवगाहा सुनत बिमलगुन अतिसुख पावहिँ । बहुरि बहुरि कति बिनय कहावहिं॥३॥ वहाँ बैठ कर रामचन्द्रजी के गुणों की कथा पूछते हैं और सुन्दर श्रथाह बुद्धिवाले हनुमानजी कहते हैं । निर्मल गुणों को सुन कर अत्यन्त सुन्न पाते हैं और विनती करके फिर फिर उसे कहलाते हैं ॥३॥ सब के गृह गृह होहिं पुराना । रामचरित पावन विधि नाना । नर अरु नारि राम गुन गानहिँ करहि दिवस निखि जात न जान४ि॥ सब के घर घर पुगणों की कथाएँ होती हैं, पवित्र रामचन्द्रजी का चरित्र नाना प्रकार से गान होता है । मनुष्य और स्त्री सप राम-गुण गाते हैं, दिन रात बीतते नहीं जानते ॥४॥ दो-अवधपुरी-बासीह कर, सुख सम्पदा समाज । सहस सेष नहिँ कहि सकहिं, जहँ नृप राम बिराज ॥२६॥ अयोध्यापुरी के निवासियों का सुख, सम्पत्ति और समाज की शोभा जहाँ रामचन्द्रजी राजा हो कर विराजमान हैं, उसको सहस्रौ शेष नहीं कह सकते ॥२६॥ सभा की प्रति में 'अवध-पुरी-वासिन्ह कर' पार है। चौ-नारदादि सनकादि मुनीसा । दरसन लागि कोसलाधीसा॥ दिन प्रति सकल अजोध्या आवहि देखि नगर बिराग बिसरावहिरात नारद आदिक और सनकादि मुनीश्वर कोशलेन्द्र भगवान के दर्शन के लिये सक प्रति दिन अयोध्यापुरी में प्राते हैं और नगर को देख कर वैराग्य भूल जाते हैं ॥१॥ जातरूप मनि रचित अटारी । नाला रा रुचिर गच ढारी॥ पुर चहुँ पास कोट अति सुन्दर । रचे कॅशूरा रङ्ग रङ्ग बर ॥२॥ सुवर्ण और रनों से जड़ी हुई घटारियाँ (कोठे) उनमें अनेक रजशी सुन्दर छतें बनी है। नगर के चारों ओर बहुत ही मनाहर कोट (शहरपनाह) है, उस पर भाँति भाँति के उत्तम फैगरे बनाये गये हैं ॥२॥ नवग्रह निकर अनीक बनाई । जनु घेरी अमरावति आई । महि बहु र रचित गच काँचा । जो बिलोकि मुनिबर मन राँचा ॥३॥ वे कगूरे ऐसे मालूम होते हैं मानों नवग्रहों का समुदाय सेना सज कर पा कर पदपुरी