पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१११०

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सप्तम सापान, उत्तरकाण्ड । १०३१ करते हैं। बालकों ने नाना प्रकार के पक्षी पाल रहा है, वे मोठी वाणी बोलते हैं और उड़ने में मुहावने लगते हैं ॥२॥ मार हंस सारस पारावत । भवनन्हि पर सामा अति पावत ॥ जहं तहँ देखहि निज परिछाही । बहु बिधि कूजहि नृत्य कराही ॥३॥ मोर, हंस, सारस और कबूतर पक्षी 'घरों पर उड़ते हुए षड़ी शोभा पा रहे हैं। जहाँ वहाँ अपनी परछाही देखते हैं, वे मुत तरह की बोली बोलते और नाचते हैं ॥३॥ मणियों और काँच के गवे में अपनी परछाही देख कर उसको अपने समान दूसरा पक्षी अनुमान कर खगों का नाचना और बोलना 'म्रान्ति अलंकार' है। सुक सारिका पढावहिं बालक । कहहु राम रघुपति जन-पालक । राजदुआर सकल विधि चारू । बीथो चौहट रूचिर बजारू ॥४॥ लड़के सुग्गा और मैना को पढ़ाते हैं कि जनों के रक्षक, रघुकुल के स्वामी रामचन्द्र कहो । राजार सप तरह सुन्दर है, गलियाँ चौराहे और बाजार मनोहर है ॥४॥ fruitraal-emoci बाजार रुचिर न बनइ भरनत, बस्तु बिनु गथ पाइये। जहँ भूप रमानिवाल तह की, सम्पदा किमि गाइये ॥ बैठे बजाज सराफ बनिक अनेक मनहुँ कुबेर ते। सब सुखी सब सच्चरित सुन्दर, नारि नर सिसु जरठ जे ॥१॥ बाज़ार की सुन्दरता कहते नहीं बनती है, बिना मोलचाल के चीजे मिलती हैं। जहाँ के लक्ष्मीकान्त राजा है वहाँ की सम्पत्ति का वर्णन कैसे किया जा सकता है ? एजाज, सराफ आदि भाँति भौति के व्यापारी पेठे हैं, वे ऐसे मालूम होते हैं मान कुवेर हो । जितने स्त्री पुरुष, बालक और पद हैं, सब सुखी तथा सुन्दर अच्छे चरित्रवाले हैं ॥ १४॥ दो-उत्तर दिसि सरजू बह, निर्मल जल गम्भीर । बाँधे घाट मगहर, स्वल्प पङ्क नहि तीर ॥२६॥ उत्तर दिशा में गहरी निर्मल जलवाली, सरयूनदी बहती है। उसके घाट सुन्दर पको बने हैं, थोड़ा भी कीचड़ किनारे पर नहीं है ॥ २८ ॥ चौ०-दूरि फराक रुचिर से घाटा। जहँ जल पिअहिँ बाजि गज ठाटा । पनिघट परम मनोहर नाना। तहाँ न पुरुष करहिं असनाना ॥१॥ अलग दूरी पर यह सुन्दर घाट है जहाँ घोड़े हाथियों के झुण्ड पानी पीते हैं । अत्यन्त मनोहर बहुत तरह के पनिट है, वहाँ पुरुष लोग नहीं स्नान करते ॥१॥