पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/११२८

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सप्तम सोपान, उत्तरकाण्ड । . साँगउँ, राम कृपा करि देहु । pope छूटइ मल कि मलहि के धोये । धृत कि पाव कोउ बारि बिलोये ।। प्रेम-भगति जल जिनु रघुराई । अभिअन्तर मल कबहुँ न जाई ॥३॥ क्या मल मैले के धोने पर छूटता है ? क्या पानी के महने से कोई घी पाता है। (कदापि नहीं)। हे रघुराज ! बिना आप की प्रेम-लक्षणा भति रूपी जल के हृदय का मैल कमी नहीं जाता ॥३॥ 'सेइ.सर्वज्ञ तज्ञ सोइ पंडित । सोइ गुनगृह विज्ञान अखंडित ॥ दच्छ सकल लच्छन जुस सोई । जाके पद-सरोज रति हाई ॥४॥ वही सर्वज्ञ और तत्वानी है, वही पण्डित है, यही गुणों का मन्दिर और अखण्ड विज्ञानी है, वही चतुर और सम्पूर्ण लक्षणों से युक्त है, जिसकी माप के चरणकमलों में प्रीति हो ॥४॥ दोन्नाथ एक बर जनम जनम प्रा पद-कमल, कबहुँ घटइ जनि नेहु ॥४॥ हे नाथ रामचन्द्रजी ! एफवर माँगता हूँ कृपा करके दीजिये । जन्म जन्मान्तर में आप के चरण-कमले का स्नेह कभी मामन हो ॥ ४ ॥ चौ०-अस कहि मुनि बसिष्ठ गृह आये। कृपासिन्धु के मन अति भाये । हनूमान भरतादिक साता । स लिये सेवक सुखदाता ॥१॥ ऐसा कह कर वशिष्ठ मुनि अपने घर आये, अपासिन्धु रामचन्द्रजी के मन में वे बहुत सुहाये । सेवकों को सुख देनेवाले महाराज साथ में भरत, लक्ष्मण, शत्रुहन तीनों भाइयों और इनूमानजी को ले कर-॥१॥ पुनि कृपाल पुर बाहर गये। गज रथ तुरग अँगावत भये ॥ देखि कृपा करि सकल सराहे । दिये उचित जेहि जेहि जोइचाहे॥२॥ फिर कृपालु रामचन्द्रजी नगर के बाहर गये और वहाँ हाथी, रथ, घोड़े मँगवाये । कृपा करके सब को देखा और उनकी सराहना की जिन जिन लोगों ने जो इच्छा TRE की उनको उचित रीति से वही दिये ॥२॥ हरन सकल सम प्रनु सम्म पाई । गये जहाँ सीतल · अॅवराई ।। भरत दीन्ह निज बसन्न डसाई । बैठे प्रभु सेवहिं सब भाई ॥३॥ समस्त श्रमों के हरनेवाले प्रभु रामचन्द्रजी थक कर वहाँ गये जहाँ शीतल आमों का बगीचा है । भरतजी ने अपना वस्त्र (पीताम्मर) बिछा दिये, प्रभु उस पर बैठ गये और सब माई सेवा करने लगे ॥३॥ वहाँ रामचरित सम्बन्धी प्रश्न जो पार्वतीजी ने किया था, वह सब पूरा हो गया। 'प्रजा सहित रघुवंस मनि, किमि गवने निज धाम" इस प्रश्न का उत्तर शिवजी ने सूक्ष्म रीति .