पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/११२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१०५० रामचरितमानस । से दिया। इष्टदेव की स्वर्गयात्रा स्पष्ट कथन करना उन्हें अभीष्ट नहीं था, इसी से सङ्केत मात्र दर्शाया है। मारुस सुत तब मारुत करई। पुलक बपुष लोचन जल भरई ।। हनूमान समान बड़-मागी । नहिँ कोउ राम-चरन अनुरागी ॥४॥ तब पवनकुमार पवन करने लगे, उनका शरीर पुलकित और आँखों में जल भरा है। हनू- मामजी के समान बड़ा भाग्यवान और रामचन्द्रजी के चरणों का प्रेमी कोई नहीं है ॥४॥ गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई । बार बार प्रनु निजमुख गाई ॥५॥ शिवजी कहते हैं-हे गिरिजा! जिस की सेवकाई और प्रीति को प्रभु रामचन्द्र ने धार बार अपने श्रीमुख से बड़ाई की है ॥५॥ दोष-तेहि, अवसर मुनि नारद, आये करतल बीन । भावन लगे शम कल, कीरति सदा नबीन ॥५०॥ उस समय हाथ में वीणा लिये हुए नारद मुनि भाये और रामचन्द्रजी की सुन्दर सदा नवीन कत्ति गाने लगे। ५०॥ चौमामवलोकय पङ्कज-लोचन । कृपा बिलोकनि सोच बिमोचन । नील तामरसस्याम कास अरि। हृदय कज्ज मकरन्द मधुप हरि ॥१॥ हे कमल नयन, सोच के चुड़ानेवाले ! कृपा की दृष्टि से मेरी ओर देखिये । नील कमल के समान श्याम, कामदेव के वैरी, हदय रूपी कमल के मकरन्द (रस) के पान करनेवाले अमर श्राप जगदीश्वर हैं ॥१॥ जातुधान बरूथ बल भजन । मुनि सजजन रजन अघ गञ्जन ॥ भूसुर ससि लक बुन्द बलाहक । असरन सरन दीन जन गाहक ॥२॥ आप राक्षस-वृन्द के पल को चूर चूर करनेवाले, मुनि और सज्जनों के प्रसन्न कारक, पाप के नसानेवाले हैं। ब्राह्मण रूपी खेती के लिये नवीन मेघमाला रूप हैं, भरक्षकों के रक्षक और दीन जनों के ग्राहक (प्रेमी) हैं ॥२॥ भुज बल विपुल मार महि खंडित । खर दूषन बिराध बध पंडित ॥ रावनारि सुख रूप भूप बर । जय दसरथ-कुल-कुमुद सुधाकर ॥३॥ अपने विशाल भुज-बल से पृथ्वी के बोझ को छिम भिन्न करनेवाले, खर दूषण और विराध के वध करने में पंडित (युत्ति से उनका संहार करनेवाले) हैं। हे रावणारि! आप की जय हो, आप सुख के रूप, राजाओं में श्रेष्ठ और दशरथजी के कुल रुपी कुमुद-वन के चन्द्रमा रूप हैं ॥३॥ सुजस पुरान बिदित निगमागम । गावत सुर मुनि सन्त-समागम कारुनीक व्यलोक मद खंडन । सब बिधि कुसल कोसला-मंडन ॥४॥ आप का सुन्दर यश पुराण, वेद और शास्त्रों में प्रसिद्ध है, देवता मुनि और सन्तों के