पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/११३५

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१०५६ रामचिरत-मानस । लिन्ह पर एक एक बिटपषिसाला । बट पीपर पाकरी रसाला ॥ सैलोपरि सर सुन्दर साहा। मनि सोपान देखि मन मोहा शा इन शिस्तरों पर एक एक बड़, पीपल, पाकर और श्राम के विशाल वृक्ष हैं । पहाड़ के ऊपर सुन्दर तालाव शोभित है, उसको मणियों की सीढ़ियाँ देख कर मन मोहित हो जाता है दो०-सीतल अमल मधुर जल, जलज बिपुल बहु रङ्ग । कूजत कल रव हंस गन, गुज्जत भज्जुल भृङ्ग ॥६॥ उलका जल मीठा, स्वच्छ और शीतल है, बहुत रंग के अपार कमल फूले हैं। हंसों के समुदाय सुन्दर बोली घोलते हैं और भ्रमर सुहावने गुजार करते हैं ॥५६॥ चौ-तेहि गिरि रुचिर बसइ खग लाई । तासु नास कलपान्त न होई ॥ माया छत गुन देोष अनेका । मोह मनोज आदि अबिबेका ॥१॥ उस सुन्दर पर्वत पर वह पक्षी (काग) रहता है, उसका प्रलयकाल में भी नाश नहीं होता । माया के किये गुण दोष नाना प्रकार के शान, मोह, काम, क्रोधादि ॥१॥ रहे व्यापि समस्त जग माही । तेहि गिरि निकट कबहुँ नहिँजाहीं॥ तहबसि हरिहिमजइजिमि कागा । सो सुनु उमा सहित अनुरागा ॥२॥ तमस्त संसार में व्याप रहे हैं, पर उस पर्वत के समीप ये सब कभीनहीं जाते। हे उमा ! वहाँ रह कर वह काग जिस तरह भगवान को भजता है, प्रीति के साथ सुनो ॥२॥ पोपर तरु तर ध्यान सो धरई । जाप जन पाकरि तर करई ॥ आम छाँह कर मानस-पूजा । तजि हरि भजन काज नहिँ टूजा ॥३॥ पीपलवृक्ष के नीचे वह ध्यान धरता है और पाकरवृक्ष के नीचे जप-यज्ञ करता है ! आम के छाँह में मानसी पूजा करता है, भगवान का भजन छोड़ कर उसको दूसरा काम नहीं है ॥३॥ घर तर कह हरिकथा प्रसङ्गा । आवहिँ सुनहि अनेक बिहङ्गा । राम चरित बिचित्र विधि नाना । प्रेम सहित कर सादर गाना ॥४॥ बड़वृक्ष के नीचे भगवान के कथा-प्रसंग को कहता है, असंख्यों पक्षी सुनने आते हैं। नाना प्रकार से विलक्षण रामचन्द्रजी के चरित्र को आदर से प्रेम-पूर्वक गान करता है nen पहले पहर में ध्यान, दूसरे पहर में जाप, तीसरे पहर में मानसिक पूजन और चौथे पहर में हरि गुण कीर्तन, इस प्रकार सारा दिन हरिभजन में बीतता है। सभा की प्रति में राम चरित विचित्र विधाना पाठ है। उसमें एक मात्रा कम होने से उच्चारण ठीक नहीं होता, छन्दोभंग दोष आ जाता.है।