पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/११४७

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। २०६८ रामचरित मानस । स्रोता सुमति सुसील सुचि, कथा रसिक हरिदास । पाइ उमा अति गोप्य अपि, सज्जन करहिं प्रकास IIEI सुन्दर मतिमान, सुशील पवित्र कथा का प्रमी और हरिभक्त भोता मिलने पर, हे उमा! सज्जन लोग अत्यन्त छिपाने की बात भी निश्चय ही प्रकाशित कर देते हैं ॥६६॥ चा-छोलेउ कांगसुंडि बहोरी । नागनाथ पर प्रीति न थारी ॥ सब विधि नाथ पूज्य तुम्ह मेरे । कृपापात्र रघुनायक केरे ॥१॥ फिर कागभुशुमित चौले-उनकी गाड़ी पर अपार प्रीति है । हे नाथ ! आप सब तरह से हमारे पूज्य और रधुनाथजी के कृपापात्र हैं ॥१॥ तुम्हहि न संसय मोह न माया। भो पर नाथ कोन्हि तुम्ह दाया। पठ मोह मिस खगपति तोही । रघुपति दीन्हि बड़ाई माही ॥२॥ आप को न सन्देह है, न मोह और माया है, हे नाथ! आपने मुझ पर दया की है। हे पक्षिराज ! मोह के बहाने रघुनाथनी ने आप को यहाँ भेज कर मुझे यड़ाई दी है ॥२॥ माह के पहाने रधुनाथजी ने श्राप को यहाँ भेज कर मुझे पढ़प्पन दिया 'कैतोपद्धति अलंकार है। तुम्ह लिज मोह कहा खगसाँई । सो नहिँ कछु आचरज गोसाँई। नारद मय बिजि सनकादी । जे मुनिनायक आतमबादी ॥३॥ हे पक्षिराज ! श्राप ने अपना मोह कहा, स्वामिन् ! वह कुछ आश्चर्य नहीं है । नारद शिव, ब्रह्मा. और सनकादिक मुनीश्वरजा श्रात्मशानी हैं ॥३॥ माह न अब्ध कीन्ह केहि केही। को जग काम नचाव न जेही ॥ तृघ्ना केहि न कीन्ह बौरहा । केहि कर हृदय क्रोध नहिं दहा ॥४॥ मोह ने किस को किस को अन्धा नहीं किया, ऐसा कौन सार में है जिसको कामदेव ने न नचाया हो ? तृष्णा किसको पागल नहीं किया ? क्रोध ने किसके हृदय को नहीं दो-ज्ञानी तापस सूर कवि, कोबिद गुन आगार । केहि कै लाम बिडम्बना, कीन्हि न एहि संसार ॥ शानी, तपस्वी, शुरवीर, कवि, विद्वान और गुणनिधान की इस संसार में लोम ने किसकी फजीहत नहीं कर डाला है। श्रीमद बक्र न कीन्ह केहि, प्रभुता बधिर न काहि । मुगलोचनि के नयन सर, को अस लाग न जाहि ॥७॥ लक्ष्मी के घमण्ड ने किस को टेढ़ा नहीं किय? बड़ाई पा कर कौन नहीं बहिरा हो गया ? मृग-नयनी के नेत्र कंपी वाण कौन ऐसा है जिसको न लगा हो? ॥७pll जलाया? | ।