पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/११५३

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१०७४ रामचरित-मानस । करता है । राजमहल सब तरह सुन्दर है, वह सुवर्ण और नाना जाति की मणियों से जड़ा है ॥१॥ बरनि न जाह रुचिर अँगनाई । जहँ खेलहिं नित चारिउ भाई॥ बाल-बिनोद करत रघुराई । बिचरत अजिर जननि सुखदाई ॥२॥ शुन्दर गनाई वर्णण नहीं की जा सकती जहाँ नित्य चारों भाई खेलते हैं। रघुनाथजी बाललीला करते हैं, आँगन में विचरण कर माताओं को सुख देते हैं ॥२॥ बरकत अदुल कलेवर- ख्यामा । अङ्ग अङ्ग प्रति छबि बहु कामा॥ नव राजीव अरुन मृदु धरना । पदज रुचिरनख ससि दुति हरना॥३॥ नीलमणि के समान श्याम रङ्गकोमल शरीर है, प्रत्येक प्रकों में बहुत से कामदेव की छवि विराजमान है। नबीन कमल के समान लाल कोमल चरण हैं और सुन्दर अंगुलियों के नखा चन्द्रमा की कान्ति को हरनेवाले हैं ॥२॥ ललित अङ्क कुलिसादिक चारी । नूपुर चारु मधुर रव कारी ॥ चारू पुरट मनि रचित बनाई। कटि किङ्किनि कल मुखर सुहाई ॥४ः। चरणों में वफा, नकुश, ध्वज और कमल चारों के मनोहर चिह्न और सुन्दर मधुर शब्द करनेवाले नूपुर शोभित हैं। कमर में सोने की शोभायमान करधनी मणियों से जड़ी हुई बनी है, जिसमें मुहावनी ध्वनि हो रही है । दो..रेखा य सुन्दर उदर, नालि रुचिर गम्भीर । उर आयत वाजत विविध, बाल-बिभूषन चीर ॥६॥ पेट से सुन्दर तीन रेखाएँ पड़ी है और नाभि (बोडरी) गहरी एवम् मनोहर है। विशाल पतस्थल पर चालकों के गहने और कपड़े अनेक भाँति के शोभायमान हैं ॥७॥ जौ--अरुन पानि नख करज मनोहर । बाहु बिसाल बिभूषन सुन्दर ॥ कन्ध बाल केहरि दर ग्रीवाँ । चारु चिबुक आननछबि सीवाँ॥१॥ लाल हाथों की अँगुलियाँ और नख मनोहर हैं, विशाल बाहुओं में सुन्दर आभूषण शोभित हैं। सिंह के बच्चे के समान कन्धा और शङ्ख के बरावर गला है, सुन्दर ठोढ़ी और मुख शोभा की अवधि है ॥१॥ - कलाल बचन अधर अरुनारे । दुइ दुइ. दसन बिसद बर बारे ॥ . ललित, कपोल मनोहर नासा । सकल सुखद ससिकर सम हासा ।।। तोतरे वचन, खाल ओठ और सुन्दर सफेद वालपन के दो दो दाँत निकले हैं। शोभन गाल, मनोहर नासिका और सम्पूर्ण सुखों की देनेवाली चन्द्रमा की किरण के समान । हँसी है ॥२॥