पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/११६७

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१० शमचरित मानस । महिमा नाम रूप गुन गाथा । सकल अमित अनन्त रघुनाथा ॥ निज निज मतिमुनि हरिगुनगावहिं । निगम सेष सिव पारन पावहि ॥२॥ रघुनाथजी की महिमा, उनका नाम, रूप और गुणों की कथा म्पूर्ण अतिशय अपार है। अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार मुनि लोग भगवान के गुणों को गाते हैं, परन्तु वेद, शेषनाग और शिवजी पार नहीं पाते हैं ॥२॥ तुम्हहिँ आदि खग मसक प्रजन्ता । नभउड़ाहिँ नहिं पावहि अन्ता ॥ तिमि रघुपति महिमा अवगाहा । तात कहहुँ कोउ पाव कि थाहा ॥३॥ मसा, पक्षी आदि से लेकर श्राप पर्यन्त उड़ें, पर श्राकाश का अन्त नहीं पायेंगे।हतात! इसी तरह रधुनाथजी की गम्भीर महिमा का थाह क्या कभी कोई पा सकता है ? (कदापि नहीं) राम काम सतकोटि सुभगतन । दुर्गा कोटि अमित अरि मर्दन ।। सक कोटिलत सरिस बिलासा । नस ससकोटि अमित अवकासा ॥४॥ रामचन्द्रजी श्रसंज्यों कामदेव के समान सुन्दर शरीरवाले हैं और करोड़ों दुर्गा के.. समान अनन्त शत्रुओं के नाशक हैं । असंख्यों इन्द्र के समान भोग-विलास करनेवाले और श्रलंक्यों श्राकाश के बराबर अनन्त अवकाश (शून्य स्थान ) चाले हैं ॥४। दोष-मरुत कोदिसत्त बिपुल बल, रबि सतकोटि प्रकास । सतकोटि सुखीलल, समन सकल भव त्रास ॥ असंख्यों पवन के समान विशाल बली हैं और अपरिमित मुय्य के समान प्रकाश करनेवाले हैं। अगणित चन्द्रमा के समान . सुन्दर शीतल और संसार-सम्बन्धी समस्त भयों के नाश करनेवाले हैं। काल कोटिसत. सरिस - अति, दुस्तर दुर्ग दुरन्त । धूमकेतु सतकोटि सम, दुराधरष भगवन्त ॥१॥ असंख्यों काल के समान अत्यन्त - विकट, दुर्गम और अपार हैं । अपरिमित अग्नि के समान भगवान रामचन्द्रजी दुर्दमनीय हैं ॥१॥ अगाध सत्तकोटि पताला । समन कोटिसत सरिस कराला तीरथ अमित कोटिसत्त पावन । नाम अखिलं अघपूग नसावन ॥१॥ प्रभु रामचन्द्रजी अनन्त पाताल के समान गहरे हैं, असंख्यों यमराज के समान.भीषण हैं । अपरिमित बहुत अधिक तीर्थ के तुल्य पवित्र हैं और जिनका नाम समन पाप समूह को नशानेबाला है। चौ-- .