पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/११९३

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१९१४ रामचरित मानस । चोकबहुँकि दुख सबकर हित ताके । तेहि कि दरिद्र परसमनि जाके । परद्रोही की होहि निसङ्का । कामी पुनि कि रहहिं अंकलङ्का॥१॥ ज्या कभी उसको दुम्न हो सकता है जो पराये का कल्यान चाहता है ? क्या वह दरिद्र हो सकता है जिसके पास पारसमणि है ? क्या दूसरे से बैर करनेवाले निर्मम हो सकते हैं ? फिर क्या कामी-पुरुष निकलाङ्क रहते हैं ? (कभी नहीं) ॥१॥ सभा की प्रति में 'परद्रोही कि होहि निःसङ्का पाठ है। यहाँ कागभुशुण्डजी का अनुमान है कि- परोपकारी मुनि के मन में दुःख क्यों हो रहा है। ब्रह्मज्ञान रूपी पारसमणि जिसके हृदय म विद्यमान रहेगी, यह द्वेषरूपी दरिद्रता का कष्ट पावेगा? जब बद्द सगुण ब्रह्म के द्रोही हैं तब निसय केले रह सकते हैं ? बंस कि रह द्विज अनहित कीन्हे । कर्म कि होहि स्वरूपहि चीन्हे ॥ काहू सुमति कि खल संग जामी । सुभगति पाव कि परत्रिय-गामी॥२॥ माझंण की बुराई करने से क्या वंश रह सकता है ? अपना रूप ( वह ईश्वर में ) पहचान लेने पर क्या कर्म हो सकते हैं। (कदापि नहीं)। दुष्ट के सर में क्या किसी को सुबुद्धि उत्पन्न हुई है. क्या पराई स्त्री से गमन करनेवाला अच्छी गति पाता है। (कभी नहीं ) ॥२॥ भव कि परहिँ परमात्मा-बिन्दक । सुखी कि होहिं कबहुँ हरि निन्दको राज कि रहइ नीति बिनु जाने । अघ कि रहहिं हरिचरित बखाने॥३॥ क्या परमात्मा को जामनेवाले संसार में पड़ते हैं ? और भगवान का निन्दा करनेवाले क्या कभी मुखी होते हैं ? (कदापि नहीं)। बिना नीति जाने क्या राज्य रह सकता है ? और हरिचरित्र वर्णन करने पर क्या पाप रह सकते हैं ? (कभी नहीं) ॥३॥ सभा की प्रति में 'सुखी कि होहि कबहुँ परनिन्दक' पाठ है। पावन जल कि पुश बिनु होई । बिनु अघ अजस कि पावइ कोई ॥ ला कि किछु हरिभगति समाना । जेहिं गावहिं श्रुति सन्त पुराना॥४॥ क्या पविन यश बिना पुण्य के होता है ? क्या बिना पाप के कोई कलंक पाता है ? (कदापि नहीं)। क्या भगवान की भक्ति के समान कुछ दूसरा लाभ है ? जिसको वेद, पुराण और खन्त गाते हैं ॥४॥ हानि कि जग एहि सम किछु माई । भजिय न रामहि नर तनु पाई। अघ कि पिसुनता सम कछु आना । धर्म किं दया सरिस हरिजाना॥५॥ हे भाई । क्या जंसार में इसके समान कुछ हानि है कि मनुष्य देह पा कर रामचन्द्रजी . का भजन न करना ? क्या चुगुलखोरी के समान कुछ दूसरा पाप है ? हे विष्णु नाहन ! क्या दया के समान दूसरा धर्म है. (कोई नहीं)॥५॥ सभा की प्रति में 'अध कि पिसुन तामस कछु.अाना पाठ है।

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