पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१२

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... ५६६ 1 ... ... ... ... ... संख्या कथा-प्रसङ्ग १५ निषाद की भ्रान्ति और युद्ध के लिये तत्पर होना १६ भरत को तीर्थराज से वर माँगना, भरद्वाज मिलन और आतिथ्य स्वीकार कर विदा होना ५६२ १७ भगवासियों द्वारा भरत की प्रशंसा, देवता-वृहस्पति सम्बाद, चित्रकूट प्रवेश, लक्ष्मण का क्रुद्ध होना और रामचन्द्रजी द्वारा समाधान १८ रामचन्द्र-भरत मिलाप, गुरु पुरबासी और माताओं से भेंट, राजा की मृत्यु पर सन्ताप और श्राद्धादि का वर्णन १६ गुरुवशिष्ठ और पुरवासियों की सभा भरत के कथन पर पशिष्ठ का अवाक हो ससमाज रामचन्द्रजी के पास आकर भरत की प्रशंसा करना २० रामचन्द्र और भरत का परस्पर सम्बाद, देवताओं की व्याकुलता और भरत की.साधुता पर भरोसा कर संतोष ब्रहण करना ६१६ २१ जनक दूत आगमन, पुरवासियों की प्रसता, जनक मिलन, रानी सुनयना और कौशल्या आदि की भेंट, परस्पर सम्बाद, जानकी जनक मिलन और राजा रानी का अनु- कथन वर्णन २२ गुरु वशिष्ठ, राजा जनक, भरत और पुरवासियों की अन्तिम विचारार्थ सभा, भरत की रामाक्षा के लिये प्रार्थना, देवताओं की चिन्ता और छल प्रयोग करना वर्णन २३ रामचन्द्र का भरत को आदेश, तीर्थजल सफल करने के लिये भरत की प्रार्थना और अनि की आशानुसार जल स्थापन, भरतकूप की महिमा तथा चित्रकूट पर्यटन ६५० २४ पादुका लेकर भरतादि की विदाई और अयोध्या को लौटना तथा राजा जनक फा मिथिला को पचान करना ६६ २५ पादुका को राज्यासन पर स्थापन कर भरत का. नन्दग्राम में रह कर तपश्चर्या में अनुरक्त होना (पारण्यकाण्ड) .१ जयन्त नेत्रभंग, अत्रिमिलन और जानकी को अनुसूया का उपदेश वर्णन २ विराध वध, सरभंगादि मुनियों से मिलन और राक्षसों के संहार की प्रतिक्षा करना तथा सुतीक्षण और अगस्त्य मुनि से रामचन्द्रजी की भेंट ३ दण्डकवन में प्रवेश, जटायु से मिलाप, गोदावरी के समीप में पंचवटी निवास और राम लक्ष्मण सम्बाद ४ शूर्पणखा आगमन, नाक कान विच्छेद, खरदुषणादि का युद्ध और चौदह सहन राक्षसों का संहार वर्णन ७०३ ५ रावण की सभा में शूर्पणला का विलाप, मारीच रावण सम्बाद, मृगध और सीताहरण ७१३ ६. रावण जटायु युब, जटायुवध और रावण का लंका में प्रवेशं तथा अशोकवाटिका में यतप्र्वक सीताजी को कैद करना ७ जानकी के वियोग से रामचन्द्रजी का विलाप, गिडमिलन और उसका तनत्याग, स्तुति तथा श्राद्ध वर्णन ... ... ... ६७४ ६१ ... ... ७२२ ... ... ... ... -७२५ .."