पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१२०

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । ६ फिरि चितवा पाछे प्रभु देखा । सहित बन्धु सिय सुन्दर बेखा ॥ जहँ चितवहिँ तहँ प्रभु आसीनो । सेवहिँ सिद्ध मुनीस प्रबीना ॥३॥ फिर पीछे देखा तो भाई और सीताजी के सहित सुन्दर वेष में प्रभु रामचन्द्रजी चले आते हैं। जिस ओर देखती है, वहीं रामचन्द्रजी विराजमान हैं और प्रवीण सिद्ध तथा मुनीश्वर लोग उनकी सेवा करते हैं ॥३॥ एक रामचन्द्रजी को युक्ति से बहुत स्थानों में वर्णन करना 'तृतीय विशेष अलंकार' है। देखे सिव बिधि बिषनु अनेका । अमित प्रभाउ एक ते एका ॥ बन्दत चरन करत प्रभु सेवा । बिबिध बेष. देखे सब देवा ॥ ४ ॥ अनेक शिव, ब्रह्मा और विष्णु को देखा, एक से दूसरे अपार महिमावाले हैं । तरह तरह के वेष में देवताओं को देखा, वे सब प्रभु रामचन्द्रजी के चरणों की वन्दना और सेवा करते हैं ॥४॥ दो०-सती बिधात्री इन्दिरा, देखी अमित अनूप । जेहि जेहि बेष अज़ादि. सुर, तेहि तेहि तनु अनुरूप ॥४॥ असंख्यों अपूर्व सती, सरस्वती और लक्ष्मी देखी, जिस जिस रूप में ब्रह्मा श्रादि देवता हैं, उसी उसी शरीर के अनुरूप उनकी शक्तियाँ हैं ॥ ५४॥ चौल-देखे जहँ तहँ रघुपति जेते । सक्तिन्ह सहित सकल सुर जीव चराचर जे संसारा । देखे सकल अनेक प्रकारो ॥१॥ उन्होंने जहाँ तहाँ जितने रघुनाथजी को देखा, उतने ही उतने सम्पूर्ण देवता शकियाँ के सहित दिखाई पड़े। जितने जड़ चेतन अनेक प्रकार के जीव संसार में हैं, सब को (नाना रूपों में ) देखा ॥१॥ पूजहिं प्रभुहि देव बहु बेखा । राम-रूप दूसर नहिँ देखा ।। अवलोके रघुपति बहुतेरे । सीता सहित न बेष घनेरे ॥२॥ बहुत वेष के देवता प्रभु रामचन्द्रजी की पूजा करते हैं, पर रामचन्द्रजी का रूप दूसरा नहीं देखा। सीताजी के सहित बहुतेरे रघुनाथजी देखे, किन्तु उनका रूप धना नहीं (एक ही शोभावाले) दिखाई दिए ॥२॥ सोइ रघुबर सोइ लछिमन सीता । देखि सती अति भई सभीता ॥ हृदय कम्प तन सुधि कछु नाहीं । नयन {दि बैठी मग माहीं ॥३॥ उन्हीं रघुनाथजी, उन्हीं लक्ष्मण और उन्हीं सीताजी को देख कर सती बहुत ही भयभीत हुई। उनका हृदय काँपने लगा और शरीर की कुछ सुध नहीं रह गई, वे आँख मूंद कर रास्ते में बैठ गई ॥३॥ तेते ॥