पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१२०७

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१९९८ रामचरित-मानस । रामचन्द्रजी पर समुद्र और श्रीखंड का आरोप तथा सज्जनों पर मेध और वायु का भारोपण करके अभेदता दिखाई गई है। बादल समुद्र से जल लेकर वर्षा करके जगत को सुखी करते हैं और पवन चन्दनवृक्ष की महक को फैला कर अन्यान्य वृक्ष को चन्दन बना देता है। उसी तरह सन्त लोग हरियश रूपी जल बरसा कर जनों के हदय को पुत्री करते हैं और संसारी जीवों को हरिकथा का सुगन्ध देकर भगवान का रूप बना देते हैं। यह 'सम- अभेदरूपक अलंकार है। अस बिचारि जोइ कर सतसङ्गा । रामभगति तेहि सुलभ बिहङ्गा ॥१०॥ हे पक्षिराज ! ऐसा विचार कर जो सत्संग करेगा, उसको राममिक्त सहज में ही प्राप्त होगी ॥१०॥ दो-ब्रह्म पयोनिधि मन्दर, ज्ञान सन्त सुर आहि । कथा सुधा मथि काढइ, भगति मधुरता जाहि ॥ वेद क्षीरसागर रूप हैं, शान मन्दराचल रूप है, सज्जन देवता रूप हैं। समुद्र को मथ कर कथा रूपी अमृत निकलते हैं जिसमें भक्ति रूपी मिठास भरा रहता है। बिरति चर्म असि ज्ञान मद, लाम मोह रिपु मारि । जय पाइय से हरिभगति, देखु खगेस बिचारि ॥१२॥ वैराग्य रूपी दाल और ज्ञान रूपी तलवार से मद, लोभ, ज्ञान कपी शत्रुओं को मार कर विजय सिले, हे गरुडजी! विचार कर देखिये, वही रामभक्ति है ॥१०॥ भक्ति और ज्ञान सम्बन्धी प्रश्न जो गरुड़जी ने किया था उसका उत्तर यहाँ समाप्त चौपुनि सप्रेम बोलेउ खगराऊ । जौँ कृपाल मेाहि ऊपर भाऊ ॥ नाथ माहि निज सेवक जानी । सप्त प्रस्न मम कहहु बखानी ॥१॥ पक्षिराज फिर प्रेम के साथ बोले कि हे कृपालु नाथ ! यदि आप की मुझ पर प्रीति है तो मुझे अपना सेवक जान कर मेरे सात प्रश्नों के उत्तर बखान कर कहिये ॥१॥ प्रथहिँ कहहु नाथ मतिधीरा । सब तैं. दुलभ कवम सरीरा॥ घड़ दुख कवन कनन सुख भारी। सोउ संछे यहि कहहु बिचारी ॥२॥ हे प्रतिधीर स्वामिन् ! पहले यह कहिये कि लब से दुर्लभ शरीर कौन है ? बड़ा दुःख कौन है ? और बड़ा सुख कौन है ? यह भी संक्षेप में विचार कर कहिये ॥२॥ सन्त असन्त मरम तुम्ह जानहु । सिन्ह कर सहज सुभाव बखानहु कवन पुन्य खुति बिदित बिसाला । कहहु कवन अघ परम कराला॥३॥ सज्जन और भ्रसज्जनों का भेद आप जानते हैं उनका सहज स्वभाव बखान कर कहिये। वेद में प्रसिद्ध और बहुत बड़ा पुण्य कौन है ? और अत्यन्त विकरात पाप कौन है ? उसको कहिये ॥३॥ सभा की प्रति में 'कहहु कवन अघ परम कृपाला' पाठ है। हुना 1