पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१२२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामायण की आरती आरति श्रीरामायनजी की। कीरति कलित ललित सिय-पो की। गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद, सालमीक विज्ञान बिसारद, सुक सन- कादि सेष अरु सारद, बरनि पवनसुत की ति नीको ॥१॥ श्रीरामायणजी जो सीतानाथ की सुन्दर शोभन कीति है, उनकी मैं भारती करता हूँ। जिस सुहावनी कीर्ति को ब्रह्मा श्रादि देवता, नारदादि मुनीश्वर, पाल्मीकि, शुकदेव, सन- कादिक विज्ञान वेत्ता, शेप, सरस्वती, और हनुमानजी, वर्णन करते हैं ॥१॥ गावत बेद पुरान अष्ट दस, छवाँ सास्त्र सब ग्रन्थन्ह को रस, मुनिजन धन सन्तन्ह को सरबस, सार अँस सम्मति सबही की ॥२॥ घेद गाते हैं कि अठारहों पुराण छओं शास्त्र और सब प्रन्थों का रंस (आनन्द) है, मुनिजनों की सम्पत्ति, सन्तों का सर्वस्व और सभी की सम्मति का सारांश है ॥२॥ गावत सन्तत सम्भु भवानी, अरु घट सम्मन मुनि बिज्ञानी, व्यास आदिकबिबर्ज बखानी, काग सुंडि गरुड़ के ही की ॥३॥ जिसे निरन्तर शिव-पार्वती गान करते हैं और विशानी मुनि अगस्त्य, व्यास आदि कवि- धेष्ठों ने बखान किया है, जो कागभुशुण्ड और गरुड़ के हृदय की सार वस्तु है ॥३॥ कलिमल हरनि विषयरस फोकी, सुभग सिँगार भक्ति जुवती की, दलन रोग-प्रव मूरि अमी की, तात मातु सब विधि तुलसी की ॥४॥ कलियुग के पापों को हरनेवाली, विषयानन्द से उदास. भक्ति रूपिणी स्त्री का श्रृंगार, संसारी रोग नसाने में अमृत की जड़ और तुलसीदास की सब तरह से पिता-माता है nen इतिशुभम् PRINTED AT THE BELVEDERE PSIATIKO WORKA, ALLARADAD, BY E. BALL.