पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१२२५

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श्रीगणेशाय नमः मानस-पिंगल अर्थात् . रामचरितमानस सम्बन्धी छन्दों के लक्षण । AFTERNOR appamaspapeprssessessement मङ्गलाचरण । दो-गजमुख पनमुख हातही, विघन बिमुख है जात । जिमि पग परत प्रयाग-मग, पाप-पहार बिलात ॥ 'छन्द-लक्षण। जिन अक्षरों की रचना में मात्राओं को नियम-बद्ध संख्या, विराम, गति और चरणान्त, में अनुप्रास पाया जाता है, उसको 'छन्द' कहते हैं । छन्द दो प्रकार के होते हैं। एक मात्रिक और दूसरा वर्णिक । मात्रिक छन्दों में मात्रा की संख्या और वर्णिक छन्दों में वर्ण की संख्या समान होती है। मात्रिक को जाति-चन्द और वर्णिक को वर्णवृत्त कहते हैं। छन्दशान के साधन। छन्द का ज्ञान भाप्त करने की इच्छा रखनेवाले मनुष्यों को सबसे पहले दीर्घाक्षर ह्रस्वाक्षर और पाठों गणों को पहचान लेना परमावश्यक है, क्योंकि इनके आने बिना छन्दों का ज्ञान होना सर्वथा असम्भव है। गुरु लघु वर्गों के लक्षण । संयुक्ताबंदी, सानुवार विसर्ग. सम्मिश्रम् । विशेषमक्षरं गुरु पादान्तस्थं विकल्पेन ॥ संयुक्त अक्षर के पहले का वर्ण, उसी तरह विसर्ग के पूर्व का और अनुस्वार युक्त (आ. है० ०५० ऐ० श्रो० औ० अं० प्रा० का० की कू के कै को कौ कं कः०) ये अक्षर गुरु माने जाते हैं। अ० १० १०० कि कुछ और जिस पर अद्धचन्द्र (") की विन्दी हो, वह लघ वर्ण कहलाता है। गुरु वर्ण को दो मात्रा और लघु वर्ण की एक मात्रा मानी जाती है । माना को मत्ता, मत, कला व कल भी कहते हैं । पिङ्गलशास्त्र में 'गुरु भक्षर का (5) यह चिह्न तथा लघु वर्ण का (1) इस प्रकार सङ्कत व्यवहत होता है।