पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१२२६

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मानस-पिङ्गल। २ O O- 1 -सपने होइ भिखारि नृप, रङ्क नाकपति होइ । जागे लाभ न हानि कछु, तिमि प्रपञ्च जिय जोह ॥ इस दोहो के 'सपने' शब्द में 'नेहोइ में 'ह' भिखारि में रक्ष में नाकपति में 'म' होर में 'ह' 'जागे दोनों गुरु, लास में 'ब' हानि में 'ह' प्रपश में 'प' और जोइ शब्द में 'ज' भहर गुरु है तथा शेष सभी लघु हैं। इसी प्रकार सर्वत्र समझना चाहिये। गणों के लक्षण दो०-मगन शिगुरु जुत बिलघु में, केशव नगन प्रमान। भगन आदि गुरु आदि लघु, यगन बखान सुजान ॥१॥ जगन मध्य गुरु जानिये, रगन मध्य लघु होई । सगन अन्त गुरु अन्त लघु, तगन कहत पर कोई ॥३॥ प्रत्येक बन्द के आदि के तीन अक्षरों में पाठो गण पाये जाते हैं। जैसे तीनों गुरुवर्ण का मगन, तीनों लघु अक्षर का नगन, धादि गुरु भगन, आदि साधु यगन, मध्य गुरु जगन, मध्य लधु रगन, अन्त गुरु सगन और अन्त लघु वर्ण का तगन होता है। इनमें मगन, नगन, भगन, यगन ये चारों शुभ हैं और जगन, रगन लगन, तगम चारों अशुभ हैं । अशुभ गण छन्द के आदि में आने से अमङ्गलकारी माने जाते हैं, किन्तु देव काव्य में इनके शुभाशुम का कोई विचार नहीं है। बाठों गणों के साङ्केतिक रूप, नाम, गुरुखघु घण, अक्षरों में गण-स्वरूप, गणे के देवता और उनके फलाफल नीचे के कोष्ठक में दिये गये हैं। उससे सारी बावे समझा में आ जायगी। , संख्या गयों के ५ ७ २ मगन नगन arra साङ्केतिक गुरु लघु अक्षरों में गणों के शुभाशुभ फल रूप पर्ण गण-स्वरूप देवता ६ SSS तीनों वर्ष गुरु केदारा पृथ्वी श्री-ऐश्वर्य तीनों वर्ण लघु दुद्धि विकाश-सुख Sil श्रादि वर्ण गुरु कादर चन्द्रमा यश-माल ISS मोदि वर्ण लघु | कुहासा बुद्धि-अनन्दकारी मध्य वर्ण गुरु ISI कहार सूय शोक कालिका अग्नि लघु SIS अझदाह-दुःख कुलही अन्त पवन भ्रम-उच्चाट और चिन्ता IS कालीन आकाश | अफलता-उच्चाटन SSI भान यगन जगन रगन " सगन U प्र "