पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१२२८

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मानस-पिङ्गल । मानस-छन्दलं या। रामचरितमानस में पाठ प्रकार के मानिक और ग्यारह प्रकार के पास कुल एपीस प्रकार के छन्द है। यदि सूक्ष्म दृष्टि से चौपाई को देखा जाय तो यह संख्या बहुत बढ़ जायगी, क्योंकि चौपाई के अन्तर्गत बहुत से छन्द भरे पड़े हैं। रामचरितमानस में लप प्रकार के छन्द और उनकी अर्धालियों को मिला कर गणना करने से कुल छे सहन एक सौ सतह- तर छंद-संख्या माती है। इनमें छानये अर्धालियाँ है, यदि उनकी संख्या : मानी जाय तब६१8 छन्दों की संख्या ठहरती है। कृन्द चार चरण के होते हैं, पर जहाँ कवि लोग दो ही चरण लिख कर छोड़ देते हैं उसको छन्द की अर्धालो कहते हैं। यह परिपाटी संस्कृत काव्य में भी पाई जाती है। बहुत ले पिल्लाचार्यों ने ऐसी अर्धालियों को रामायण से अलग कर देने की कृपा की है। हमने ऊपर के कोष्ठक में प्रत्येक काण्डों की छन्दसंख्या का उल्लेख्न किया है- मात्रिक छन्दों के नाम । पीछे हम लिख आये हैं कि रामचरितमानस में आठ प्रकार के माविकाछन्द आये हैं। उनके नाम इस तरह हैं। (१) चत्रपैया, (२) चौपाई, (1) डिल्ला, (४) नामर, (५) दोहा, (६) सोरठा, (७) इरिगीतिका, (८) त्रिभही। (१) चौवरैया-छन्द के लक्षण । चपैया-छन्द के चारों चरण ३०-३० मात्रा के होते हैं । प्रत्येक चरणों में १०-:-१२ मात्राओं पर विराम और चरणान्त में यगण रहता है। केवल बालकांड में या छन्द आया है जिसकी संख्या 8 हैं। उदाहरण सुर मुनि गन्धर्ना, मिलि कर स , गे बिच के लोका । संग गो-तनुधारी, भूमि विचारी, परम बिकल भय सोका। व्रमा सब जाना, मन अनुमाना, मोरज का न बसाई । जाकरित दासी, से अबिनासी, हमरज तोर सहाई ॥१॥ (२) चौपाई छन्द के लक्षण । चौपाई-छन्द के चार्ग चरण मेला सोलह मात्रा के होते हैं, इसके चरणान्त में जगण और तगणनामा चाहिये। चैपाई को रूपचौपई, पादाकुलक भी कहते हैं। शुरट, चौपाई- छन्द का उदाहरण नीचे दिया गया है । दास कवि लिखते हैं कि-"सारह माशा छन्द गति, रूप चौपई लेति । पन्द्रह से सत्तामवे, जोन भेद बिसेशि " यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाय तो रामचरितमानस में कुल ४५६४ चौपाई छन्द और चापाई की प्रालियाँ हैं, प्रालियों की संख्या मानने से सप ४५१९ छन्द हैं। पर वे सभी चौपाई-छन्द नहीं हैं, चैपाई, मात्रा. समक, अनुकूला, अचलधृति, कामवाल, सुमक्षिवित्रा, चक, चण्डी, चन्द्रवरम, चम्पक- माला, जलोवृत, डिल्ला, तामरस, नवमालिनी, पणव, प्रहरणकलिका, भ्रमरविलसिता; मत्ता, मालती, मोदक, दोधक, विभुन्माला, शुद्धविराट, स्वागता आदि कितने ही प्रकार के छन्द . मिले जले हैं । परन्तु कपिजी ने उन्हें चौपाई के नाम से प्रसिद्ध किया है ।