पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१२२९

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५ मानस-पिङ्गल उदाहरण लालन जोग लखन लघु लाने । भे न भाइ अस अहहि न होने । पुरजन प्रिय पितु मातु दुलारे । सिथ-रघुबीरहि मान-पियारे ॥१॥ (३) डिल्ला-छन्द के लक्षण। डिल्ला-छन्द के चारों चरण सोलह सोलह मात्रा के होते हैं और इसके प्रत्येक चरणों के अन्त में भगण का रहना आवश्यक है। यह चार छन्द और इसकी एक श्रॉली लङ्काकायर के सिवाय अन्यत्र नहीं नहीं आया है। उदाहरण मामभिरक्षय रघुकुल-नायक, धृत वर चाप रुचिर कर सायक । मोह सहा धन-पटल विभञ्जन, संसय-विपिन-अनल सुर-रज्जन ॥१॥ (४) तोमर छन्द के लक्षण । तोमर-छन्द के चारों धरण बारह बारह मात्रा के होते हैं और अन्त में गुरु लघु वर्ण रहता है । यह अरण्यकाण्ड में ६ छन्द और एक इलशी पर्दाली तथा लङ्काकाण्ड में १६ कुल २२॥ छन्द रामचरितमानस में आया है। C उदाहरण जय दूषनारि खरारि । मर्दन निसाचर धारि॥ यह दुष्ट मारयो नाय । भये देव सकल सनाय ॥१॥ (५) दोहा छन्द के लक्षण । दोहा-छन्द के प्रथम और तृतीय चरण तेरह तेरह मात्रा के तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण ग्यारह मात्रा के होते हैं। इसके प्रथम और तृतीय चरण के आदि में जगण न आना चाहिये एवम् अन्त का अक्षर गुरु न हो। इसकी संख्या रामचरितमानस के सातो काण्डों में ११७३ है । दोहा का पिछला चरण पहले भार पहला पीछे पढ़ने से सोरठा होता है, नीचे देखो । गोस्वामीजी ने अधिकांश दोहे १२-११ मात्रा के विराम से लिखे हैं। उदाहरण । पिता जनक भूपाल-मनि, ससुर भानुकुल भानु । पति रबिकुल-कैरव-विपिन, विधु-गुन-रूप-निधानु ॥३॥ दोहा को उलट कर सोरठा। ससुर भानुकुल भानु, पिता जनक भूपाल-मनि । विधु गुन-रूप-पति निधानु, पति रविकुल-कैरव-विपिन ॥ (६) सोरठा-छन्द के लक्षण! सोरठा-छन्द के प्रथम और तृतीय चरण ग्यारह ग्यारह मात्रा के तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण तेरह तेरह मात्रा के होते हैं । इसके द्वितीय और चतुर्थ चरण में जगणं न आना चाहिये, इससे छन्द की गति बिगड़ जाती है और अशुभ माना गया है। रामचरितमानस के सावने