पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१२५

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रामचरित मानस । ७४ राम नाम सिव सुमिरन लागे । जानेउ सती जगतपति जागे ॥ जाइ सम्भु-पद बन्दन कीन्हा । सन्मुख सङ्कर आसन दीन्हा ॥२॥ शिवजी राम-नाम स्मरण करने लगे, तव सती ने जाना कि जगत् के स्वामी जगे। उन्होंने . आकर शिवजी के चरणों में प्रणाम किया, शङ्करजी ने बैठने के लिए उन्हें सामने प्रासन दिया पूर्व प्रतिक्षानुसार वाम भाग में श्रासन न देकर सामने बैठने को कहा। लगे कहन हरिकथा रसाला । दच्छ प्रजेस भये तेहि काला ॥ देखा बिधि बिचारि सब लायक । दच्छहि कीन्ह प्रजापति-नायक ॥३॥ भगवान् की रसीली कथा कहने लगे, उस समय दक्ष प्रजापति हुए थे। ब्रह्माजी ने उनको सव तरह योग्य अनुमान कर दक्ष को प्रजापतियों का मालिक बना दिया ॥ ३ ॥ बड़े अधिकार दच्छ जब पावा । अति अभिमान हृदय तब आवा । नहिं कोउ असजनमा जग माहीं । प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ॥४॥ जब दक्ष ने बड़ा आधिपत्य ( मलिकई ) पाया, तव उनके हृदय में बहुत ही अभिमान आ गया। ऐसा संसार में कोई नहीं जन्मा कि प्रभुता पा कर जिसको मद न हो ॥ ४॥ जय दत ने बड़ा अधिकार पायो, तब उन्हें बेहद घमंड हुआ। इसका विशेष सिद्धान्त से समर्थन करना कि ऐसा तो संसार में कोई जन्मा ही नहीं कि महत्व पा कर उसे गर्वन हुश्रा हो 'अर्थान्तरन्यास अलंकार, है । दो-दच्छ लिये मुनि बोलि सब, करन लगे बड़ जाग। सकल सुर, जे पावत मख भाग ॥६॥ दक्ष ने सव मुनियों को बुला लिया और बड़ा यज्ञ करने लगे। जो देवता यज्ञ में भाग पाते हैं, उन सब को आदर के साथ निमन्त्रित किया ॥६॥ चौ०-किन्नर नाग सिद्ध गन्धर्वा । बधुन्ह समेत चले सुर सर्वा । बिष्नु बिरचि महेस बिहाई । चले सकल सुर जान बनाई ॥११ किन्नर, नाग; सिद्ध और गन्धर्व श्रादि सभी देवता अपनी अपनी स्त्रियों के सहित चले । विष्णु, ब्रह्मा और शिवजी को छोड़ कर सब देवता अपना अपना विमान सजाकर चले ॥१॥ सती बिलोके व्योम बिमाना । जात चले सुन्दर विधि नाना ॥ सुर-सुन्दरी करहिँ कल गाना । सुनत सवन छूटहिँ मुनि ध्याना ॥२॥ सती ने देखा कि आकाश में नाना प्रकार के सुन्दर विमान चले जाते हैं। उनमें देवताओं. की सुन्दरियाँ मनोहर गान करती हैं, जिसको सुनते ही मुनियों के ध्यान छूट जाते हैं ॥२॥ नेवते सादर