पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१२९

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हाहाकार मच गया।॥४॥ रामचरित मानस । तुरन्त देह त्याग दूंगी। ऐसा कह कर योगाग्नि से शरीर भस्म कर दिया, सारी यज्ञशाला में दो०-सती मरन सुनि सम्भु गन, लगे करन मख खोस । जग्य- -बिधन्स बिलोकि भृगु, रच्छा कोन्हि मुनीस ॥६॥ सती का मरना सुन कर शिवजी के गण यज्ञ का नाश करने लगे। यज्ञ का विध्वंस. होते देख कर भृगु मुनीश्वर ने मन्त्र के बल से रक्षा की ॥ ६४ ॥ चौ--समाचार सब सङ्कर पाये। बीरभद्र करि कोप पठाये । जग्य बिधन्स जाइ तिन्ह कीन्हा । सकल सुरन्ह बिधिवत फल दीन्हां ॥१॥ ये सब समाचार शिवजी को मिले, उन्होंने कोध कर के वीरभद्र को भेजा। वीरभद्र ने , जा कर यज्ञ का सत्यानाश किया और सब देवताओं को यथोचित फल दिया ॥२॥ भइ जग बिदित दच्छ-गति साई । जसि कछु सम्भु-बिमुख कै.होई ॥ यह इतिहास सकल जग जाना। तात संछेप बखाना ॥ दक्ष की वही गति संसार में प्रसिद्ध हुई, जैसी कुछ शिव-द्रोही की होती है। यह इतिहास सारा जगत जानता है, इससे मैं ने संक्षेप में वर्णन किया ॥२॥ सती मरत हरि सन बर माँगा । जनम जनम सिव-पद अनुरागा ॥ तेहि कारन हिमगिरि-गृह जाई । जनमी पारवती तनु पाई ॥३॥ मरते समय सती ने भगवान से बर माँगा कि शिवजी के चरणों में मेरा जन्म जन्मान्तर प्रेम बना रहे । इस कारण हिमाचल के घर जाकर पार्वती का शरीर पा कर पैदा हुई ॥३॥ सती ने यह सोचा कि पति के उपास्यदेव के साथ मैंने अपराध किया है, विना उनके क्षमा किए शिवजी प्रसन्न न होंगे, इसीसे भगवान् से वर माँगा और अन्त में भगवान् ने शिवजी से प्रार्थना कर पार्वती के साथ विवाह करने को उन्हें राजी किया। जब तँ उमा सैल-गृह-जाई । सकल सिद्धि सम्पति तहँ छाई ॥ जहँ तहँ मुनिन्ह सुआस्त्रम कीन्हे । उचित बास हिम भूधर दीन्हें ॥४॥ जब से हिमवान-पर्वत के घर पार्वतीजी ने जन्म लिया, तब से वहाँ सम्पूर्ण सिद्धि और सम्पत्ति का निवास हो गया । जहाँ तहाँ मुनियों ने सुन्दर श्राश्रम बनाया, हिमाचल ने उन्हें उचित स्थान दिया VER दौ--सदा सुमन फल सहित सब, द्रुम नव नाना जाति । प्रगटी सुन्दर सैल पर, मनि-आकर बहु भाँति ॥६॥ नाना प्रकार के सब नवीन वृक्ष सदा फूल फल सहित रहने लगे। बहुत तरह के रनों की सुन्दर लाने पहाड़ पर प्रकट हुई ॥६५॥ । .