पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

|: प्रथम सोपान, बालकाण्ड । चौ०-सरिता सब पुनीत जल बहहौँ । खग मृग मधुप सुखी सब रहहौं । सहज-अयर सब जीवन्ह त्यागा । गिरि पर सकल करहि अनुरागा॥ सय नदियाँ पवित्र जल पहती है, पक्षी, मृग और भ्रमर सब सुखी रहते हैं। सब जीवों ने स्वाभाविक वैर त्याग दिया । पहाड़ पर वे सब परस्पर प्रेम करते हैं ॥१॥ सोह सैल गिरिजा गृह आये । जिमि जन रामप्रगति के पाये। नित नूतन मङ्गल गृह तासू । ब्रह्मादिक गावहिँ जस जासू ॥२॥ घर में पार्यतीजी के आने से पर्वत ऐसा शोभित हो रहा है, जैसे मनुष्य रामचन्द्रजी को भक्ति प्राप्त होने से शोभायमान होता है । उसके भवन में नित्य नया मङ्गल होता है जिसका यश गान ब्रह्मा आदि देवता भी करते हैं ॥२॥ नारद समाचार सब पाये । कौतुकहीं गिरि-गेह सिधाये॥ सैलराज बड़ आदर कीन्हा । पद पखारि बर आसन दीन्हा ॥ ३ ॥ नारदजी ये सब समाचार पाकर प्रसन्नता से हिमवान के घर चल कर आये। पर्वतराज ने उनका बड़ा आदर किया, पाँव धोकर सुन्दर भासन दिया ॥३॥ नारि सहित मुनि-पद सिर नावा । चरन-सलिल सघ भवन सिंचावा । निज सौभाग्य बहुत विधि बरना । सुता बोलि मेली मुनि चरना ॥४॥ उनके चरणोदक से सारा घर सिँचवाया, फिर स्त्री के सहित मुनि के चरणों में सिर नषाया। बहुत तरह से अपने भाग्य की बड़ाई कर के कन्या को बुला कर मुनि के चरणों पर दो०--त्रिकालभ्य सर्वग्य तुम्ह, गति सर्वत्र तुम्हारि । कहहु सुता के दोष गुन, मुनिबर हृदय बिचारि ॥ ६६ ॥. हिमवान ने कहा-हे मुनिवर | श्राप को सब जगह पहुँच है और आप त्रिकालदर्शी एवम् सर्वज्ञ है । वय में विचार कर कन्या के दोष-गुण कहिए ॥६६॥ चौ०-कह मुनि बिहँसि गूढ मृदु बानी । सुता तुम्हारि सकल-गुन-खानी। सुन्दर सहज सुसील. सयानी । नाम उमा अम्बिका भवानी ॥१॥ मुनि हँस कर अभिप्राय से भरी कोमल वाणी कहने लगे, आपकी कन्या सम्पूर्ण गुणों की खानि है। यह स्वभाव से ही सुन्दर, सुशोला औरसयानी है। इसका नाम उमा, अम्बिका तथा भवानी है ॥१॥ सब लच्छन्न-सम्पन्न कुमारी । होइहि सन्तत - पियहि पियारी । सदा अचल एहि कर अहिवाता । एहि ते जस पइहहि पितु-माता ॥२॥ यह कन्या सव लक्षणों से भाग्यवती है और अपने स्वामी को निरन्तर प्यारी होगी। इसका साहाग सदा अचल रहेगा, इससे माता-पिता यरा पावेंगे ॥२॥ डाल कर प्रणाम कराया था ।