पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१३४

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। प्रथम सोपान, बालकाण्ड । दो अस कहि ब्रह्म भवन मुनि गयऊ । आगिल चरित सुनहु जस भयक ॥ पतिहि एकन्त पाइ कह मैना । नाथ न मैं. समुझे मुनि-बैना ॥१॥ ऐसा कह कर मुनि ब्रह्मधाम को गये, आगे जैसा चरित्र हुआ वह सुनिए । पति को अकेले में पा कर मैना कहने लगी- हे नाथ ! मैं ने मुनि की बातें नहीं समझ पाई ॥ १॥ गुटका में 'नाथ न मैं वूझे मुनि चैना' णठ है। जौँ घर बर कुल होइ अनूपा । करिय बिबाह सुता-अनुरूपा । न त कन्या बरु रहउ कुँआरी । कन्त उमा मम मान-पियारी ॥ २ ॥ जो घर, वर और कुल उत्तम हो तो कन्या के अनुकूल (वर के साथ) विवाह कीजिए। हे कन्त ! नहीं तो चाहे कन्या विना व्याही रहे (पर अयोग्य वर के साथ शादी करना उचित नहीं, क्योंकि) पार्वती मुझे प्राण के समान प्यारी है ॥२॥ जॉन मिलिहि बर गिरजहि जोगू । गिरि जड़ सहज कहिहि सब लागू ॥ सोइ बिचारि पति करहु बिबाहू । जेहि न बहोरि होइ उर दाहू ॥३॥ यदि पार्वती के योग्य, वर न मिलेगा तो सब लोग कहेंगे पर्वत स्वभाव ही से जड़ (मूर्ख) होते हैं। हे स्वामिन् ! इस बात को समझ कर विवाह क्षीजिए, जिसमें फिर पीछे दय में सन्ताप न हो ॥३॥ अस कहि परी चरन धरि सासा । बोले सहित सनेह गिरीसा ।। बरु पावक प्रगदइ ससि माहीं । नारद बचन अन्यथा नाहीं ॥ १ ॥ ऐसा कह कर चरणों पर मस्तक रख कर गिर पड़ी, तब हिमवान स्नेह के साथ बोले। चन्द्रमा में चाहे अग्नि प्रकट हो, तो हो जाय, पर नारयजी की बात झूठी न हेागी ॥४॥ देवर्षि नारदजी परम योगेश्वर हैं, उनका बचन स्वभावतः मिथ्या नहीं हो सकता। परन्तु हिमवान का यह कहना कि चाहे चन्द्रमा में अग्नि प्रकट हो अर्थात् यह असम्भव सम्भव हो जाय, तो भी नारद की बात भूठ नहीं हो सकती। सामान्य का विशेष से समर्थन 'अर्थान्तरन्यास अलंकार' है। देश-प्रिया सोच परिहरहु सब, सुमिरहु श्रीभगवान । पारबती निरमयउ जेहि, साइ करिहि कल्यान ॥ १ ॥ हे प्रिये सब सोच छोड़ कर श्रीभगवान् का स्मरण करो। जिन्होंने पार्वती को उत्पन्न किया है, वेही कल्याण करेंगे ॥७॥ साहस-पूर्वक ईश्वर पर भरोसा कर चित्त को रद करना 'धृति सचारी भाव' है । सभा की प्रति में 'साह करिअहि कल्यान' पाठ है। +