पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१४०

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जाते हैं। प्रथम सोपान, बालकाण्ड । कश्यप, अत्रि, भरद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, यमदग्नि और वशिष्ठ ये लप्तर्षि कहे चौ०-रिषिन्ह गौरि देखी तहँ कैसी। भूरतिवन्त तपस्या जैसी। बोले मुनि सुनु सैलकुमारी । करहु कवन कारन तप भारी ॥१॥ ऋषियों ने गौरी को कैसी देख्या जैसी मूर्तिमान तपस्या हो । मुनियोंने कहा- हे शैलकुमारी ! किस कारण इतना बड़ा तप करती हो ? ॥१॥ केहि अवराधहु. का तुम्ह चहहू । हम सन सत्य मरम सब कहहू । सुनत रिषिन्ह के बचन भवानी। बोली गूढ़ मनोहर बानी ॥२॥ तुम किस की आराधना करती हो और क्या चाहती हो? हम से सब सशा भेव कही। इस तरह मुनियों के बचन सुन कर भवानी अभिप्राय गर्भित मनोहर वाणी बोली ॥२॥ कहत मरम मन अति सकुचाई। हँसिहहु सुनि हमारि जड़ताई ॥ मन हठ परा न सुनइ सिखावा । वहत बारि पर भीति उठावा ॥३॥ असली बात कहने में मन बहुत लजाता है, आप लोग मेरी मूर्खता को सुन कर हँसेंगे। - मन हठ में पड़ा है, वह सिखाना नहीं सुनता । पानी पर भीत उठाना चाहता है ॥३॥ कहना तो यह है कि मैं योगिराज शिव भगवान् से अपना विवाह करना चाहती हूँ, पर इस प्रस्तुत वृत्तान्त को न कह कर यह कहना कि पानी पर भीत उठाना चाहती हूँ 'ललित अलंकार' है नारद कहा सत्य सोइ जाना। बिनु पड्कन्ह हम चहहिँ उड़ाना ॥ देखहु मुनि अबिधेक हमारा । बाहिय सदा सिवहि भरतारा ॥४॥ जो नारदजी ने कहा उसको सच जान कर हम बिना पंखों के उड़ना चाहती हैं । हे मुनि- वरो ! मेरी अज्ञानता को देखिये कि मैं सदा शिवजी को पति बनाना चाहती हूँ ॥४॥ दो०-सुनत बचन बिहँसे रिषय, गिरि-सम्भव तव देह । नारद कर उपदेस सुनि, कहहु बसेउ को गेह ॥७॥ पार्वतीजी की बात सुन कर ऋषि लोग हँसे और उन्होंने कहा कि आखिरकार तुम्हारी देह पर्वत से उत्पन्न हुई है । मला! यह तो कहो, नारद का उपदेश सुन कर कौन घर में बसा अथवा किसका घर बसा ? ॥७॥ गिरि सम्भव' शब्द में लक्षणामूलक व्यङ्ग है कि जड़ की कन्या क्यों न ज ना करे । चौ०-दच्छ-सुतन्ह उपदेसेन्हि जाई। तिन्ह फिरि मवन न देखा आई ॥ चित्रकेतु कर घर उन्ह घाला । कनककसिपुकर पुनि अस हाला ॥१॥ उन्हाने जा कर दक्षप्रजापति के पुत्रों को उपदेश दिया, फिर उन सबने लौट कर घर नहीं देना । उन्हों ने चित्रकेतु के घर का नाश किया, फिर हिरण्यकशिपु का यही हाल हुआ ॥१॥ ! . १२