पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१४४

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । दो-तुम्ह माया भगवान सिव, सकल जगत पितु मातु । नाइ चरन सिर मुनि चले, पुनि पुनि हरषित गातु ॥ ८ ॥ आप माया और शिवजी ईश्वर सम्पूर्ण जगत् के माता-पिता हैं। बार बार चरणों में मस्तक नवा कर पुलकित शरीर से मुनि लोग चले ॥१॥ चौ०-जाइ मुनिन्ह हिमवन्त पठाये । करि बिनती गिरिजहि गृह ल्याये। बहुरि सप्तरिषि सिव पहिं जाई। कथा उमा के सकल सुनाई ॥१॥ मुनियों ने जा कर हिमवान को भेजा, घे विनती कर के पार्वतीजी को घर ले आये । फिर सप्तर्षियों ने शिवजी के पास जा कर उमा की सारी कथा कह सुनाई ॥१॥ भये मगन सिव सुनत सनेहा । हरषि सप्तरिषि गवने गेहा ॥ मन थिर करि तब सम्भु सुजाना । लगे करन रघुनायक ध्याना ॥२॥ पार्वतीजी की प्रीति को सुन कर शिवजीस्नेह में मग्न हो गये, सप्तऋषि आनन्दित होकर अपने स्थान को चले गये ।तष शङ्करजी मन स्थिर कर के रघुनाथजी का ध्यान करने लगे ॥२॥ अब कथा का प्रसङ्ग दूसरी ओर चला । तारक-असुर भयउ तेहि काला । भुज प्रताप बल तेज बिसाला ॥ तेहि सब लोक लोकपति-जीते । भये देव सुख-सम्पति रोते ॥ ३ ॥ उसी समय तारक नाम का दैत्य हुआ, जिसके भुजा का बल, प्रताप और तेज बहुत बड़ा था। उसने लोकपालों के सब लोक जीत लिये, देवता सुख और सम्पत्ति से खाली हो गये ॥३॥ के अजर अमर सो जीति न जाई । हारे सुर करि बिबिध लराई ॥ तब बिरच्चि पहिं जाइ पुकारे । देखे विधि सब देव दुखारे । १ ॥ वह तारकासुर अंजर अमर था,इससे जीता नहीं जाता था । देवता अनेक तरह लड़ाई कर हार गये। तब ब्रह्माजी के पास जा कर पुकार मचाया, विधाता ने देखा कि सब देवता दुखी है (मन में विचार कर बोले )॥४॥ दो-सब सन कहा बुझाइ बिधि, दनुज निधन तब होइ। सम्भु-सुक्र-सम्भूत-सुत, एहि जीतइ रन सोइ ॥ २ ॥ ब्रह्माजी ने समझा कर सब से कहा कि दैत्य का नाश तो तब होगा जब शिवजी के वीर्य से पुत्र उत्पन्न हो, इसको वही जीतेगा ॥२॥ चौ०-मार कहा सुनि करहु उपाई। होइहि ईस्वर करिहि सहाई ॥ सती जो तजी दच्छ-मख देहा । जनमी जाइ हिमाचल गेहा ॥१॥ मेरा कहना सुन कर उपाय करो, श्वर सहायता करेगा तो कार्य सिद्ध होगा। सता जिसने दक्ष के यज्ञ में शरीर छोड़ा था, वह हिमाचल के घर जा कर जन्मी है ॥ १॥