पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१४८

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । सा-धरा न काहूँ धीर, सब के मन मनसिज हरे। जे राखे रघुबीर, ते उबरे तेहि काल महँ ॥५॥ किसी ने धीरज नहीं रक्ला, कामदेव ने सब के मन को हर लिया । वे उस समय उबरे जिनकी रघुनाथजी ने रक्षा की 10 चौ०-उभयघरी अस कौतुक भयऊ । जब लगि काम सम्भु पहिँ गयऊ । सिवहि बिलोकि ससङ्केड मारू । भयउ जथाथिति सब संसारू ॥१॥ दोघड़ी तक यह तमाशा हुआ जब तक कामदेव शिवजी के पास गया ! शङ्गए भगवान को देख कर कामदेव डरा, सब संसार जैसा का तैसा हो गया ॥१॥ भये तुरत संब जीव सुखारे । जिमि मद उतरि गये मतवारे ॥ रुद्रहि देखि मदन भय माना। दुराधरष दुर्गम भगवाना ॥ २ ॥ सय जीव तुरन्त ऐसे सुखी हुए जैसे नशा उतर जाने पर मतवाले प्रसन्न होते हैं। रुद्र को देख कर कामदेव ने भव माना, क्योंकि शिव भगवान कठिन दुर्दमनीय हैं (कामदेव उन्हें जीतने के इरादे से आया है) ॥२॥ फिरत लोज कछु करिनहिं जाई । मरन ठानि मन रचेसि उपाई ॥ प्रगटेसि तुरत रुचिर रितुराजा । कुसुमित नव तरु सखा बिराजा ॥३॥ फिरते हुए लज्जा है कुछ करते नहीं बनता, मन में मरना निश्चय करके उपाय रवा। तुरंत अपने मित्र सुन्दर ऋतुराजवसन्त को प्रकट किया, वह नवोन फूले हुए वृक्षों में विराज- मान हुभा ॥३॥ बन उपबन बापिका तड़ागा। परम सुभग सब दिसा विज्ञागा ॥ जहँ तहँ जनु उमगत अनुगगा। देखि मुयेहु मन मनसिज जागा ॥४॥ वन, उपवन, धावली, तालाब और सारी दिशाएं अलग अलग प्रत्युचम शोसित हो रही हैं। ऐसा मालूम होता है मानो जहाँ तहाँ प्रेम (रस) उमड़ रहा हो, जिसको देख कर मुर्दे के मन में भी कामदेव उत्पन्न होता है ॥४॥ हरिगीतिका-छन्द। जागेउ मनोभव मुयेहु मन बन,-सुभगता न परइ कही। सोतल सुगन्ध सुमन्द मारुत, मदन-अनल सखा सही ॥ बिकसे सरन्हि बहु कञ्ज गुञ्जत,-पुज्ज मज्जुल मधुकरा । कलहंस पिक सुक सरस-रव करि,-गान नाचहिँ अपछरा ॥ ५ ॥ मुर्दे के मन में भी कामदेव जाग जाता है, धन की सुन्दरता कहते नहीं बनती। कामाग्नि का सच्चा मित्र शीतल, सुगन्धित और सुन्दर पवन धीमी गति से बह रहा है। तालावों में .