पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१५८

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । '१०५ प्रयमहिँ गिरि बहु ग्रह सँवराये । जथाजोग जहँ तहँ सब छाये ॥ पुर-सोभा अवलोकि सुहाई । लागइ लघु बिरच्चि निपुनाई ॥४॥ पर्वतराज ने बहुत से घरों को पहले ही से सजवाया था, उनमें वे लव यथायोग्य स्थानों में ठहरे। नगर की सुहावनी छषि देख कर विधाता की रचना की चतुराई तुच्छ मालूम होती है ॥ हरिगीतिका-छन्द । लघु लागि बिधि की निपुनता, अवलोकि पुर सोमा सही। बन बाग कूप तडाग सरिता, सुभग सब सक को कही । मङ्गल बिपुल तोरन पताका, केतु गृह गृह सोहहीं। बनिता पुरुष सुन्दर चतुर छबि,-देखि मुनि मन माहहीँ १८॥ नगर की स्वच्छ शोभा को देख कर ब्रह्मा की चतुराई छोटी लग रही है। वन, बाग, कुआँ, तालाब और नदियाँ सब सुहावनी हैं, उनकी छटा कौन कह सकता है ? घर घरअलंखयों माङ्गलीक ध्वजा, पाताका, धन्दनवार श्रादि शोभायमान हो रहे हैं। सुन्दर चतुर और छबीले स्त्री-पुरुषों को देख कर मुनियों के मन मोहित हो जाते हैं ॥ ॥ दो०-जगदम्बा जहँ अवतरी, सो पुर बरनि कि जाइ । रिधि सिधि सम्पति सकल सुख, नित नूतन अधिकाइ ॥४॥ अहाँ जगन्माता ने जन्म लिया, क्या उस नगर की सोभा कही जा सकती है ? (कदापि नहीं)। ऋद्धि, सिद्धि, सम्पति और सारा सुख नित्य नया नया बढ़ता जाता है ॥४॥ चौ०-नगर निकट बरात जब आई। पुर खरभर 'सभा अधिकाई ॥ करि बनाव सजि बाहन नाना। चले लेन सादर अगवाना ॥१॥ जब नगर के समीप बरात श्रागई, तब पुर में चहल पहल की शोभा बढ़ गई । नाना प्रकार की संवारियों के सजाव करके आदर के साथ अगवानी लेने चले ॥१॥ हिय हरष सुर-सेन निहारी। हरिहि देखि अति भये सुखारी॥ सिव समाज जब देखन लागे । बिरि चले बाहन सब भागे ॥२॥ देवताओं की गोल देख कर हदय में प्रसन्न हुए और विष्णु भगवान को देख कर परमा. नन्दित हुए । जब शिवजी के समाज को देखने लगे, तब हाथी, घोड़े आदि सवारी के जानवर सब घबड़ा कर भाग चले ॥२॥