पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१५९

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रामचरित मानस । १०६ धरि धीरज तह रहे सयाने । बालक सब लेइ जीव पराने ॥ गये मवन पूछहिँ पितु माता। कहहिँ बचन भय कम्पित गाता ॥३॥ चतुर लोग धीरज धर कर वहाँ रहे और सब लड़के जी लेकर भाग गये। घर जाने पर उनके माता-पिता पूछते हैं, भय से शरीर कापते हुए वे वचन कहते हैं ॥३॥ बाहनों और बालकों का यथार्थ भय वर्णन 'भयानक रसाभास' है। कहिय काह कहि जाइ न बाता। जम कर धारि किधौँ बरियाता॥ बर औराह बरद असवारा । व्याल कपाल बिभूषन छोरा ॥ क्या कहूँ ? बात कही नहीं जाती है, यह यमराज की सेना है, या कि यरात है। दूलह पागल है और बैल पर सवार है। साँप, नर-खोपड़ी और राख ही उसके गहने है ॥ ४॥ हरिगीतिका-छन्द । तन छार ब्याल कपाल भूषन, नगन जटिल भयङ्करा । सँग भूत प्रेत पिसाच 'जोगिनि, बिकट-मुख रजनीचरा ॥ जो जियत रहिहि बरात देखत, पुन्य बड़ तेहि कर सही। देखिहि सो उमा बिबाह घर घर, बात असि लरिकन्ह कही ॥६॥ शरीर पर भस्म, साँप और खोपड़ी का गहना, नडा, जटाधारी और डरावना है। साथ में भूत, प्रेत, पिशाच, योगिनी तथा विकराल मुखवाले राक्षस है। जो यरात देख कर जीता रहेगा, सचमुच उसका बड़ा भारी पुण्य है और वही पार्वती के विवाह को देखेगा । इस तरह की बात घर घर लड़कों ने कही ॥६॥ दो-समुझि महेस समाज सब, जननि जनक मुसुकाहि । बाल बुझाये विविध विधि, निडर होहु डर नाहि ॥ सव शिवजी के समाज को समझ कर माता-पिता मुस्कुराने लगे। उन्होंने बहुत तरह से चालकों को समझाया कि कोई डर नहीं है, तुम लोग निर्भय रहो चौ०--लेइ अगवान बरातहि आये । दिये सबहि जनवास सुहाये ॥ मैना सुभ आरती सँवारी । सङ्ग सुमङ्गल गावहिँ नारी ॥१॥ अगवानी लोग बरात को ले आये और सभी को सुहावने जनवास दिये । मैना मुम्बर भारती सजाकर, स्त्रियों के साथ श्रेष्ठ मङ्गल के गीत गाती हैं ॥१॥ कञ्चनधार साह बर पानी । परिछन चली हरहि हरषानी ॥ . विकट-बेष रुगहि जब देखा । अबलन्ह उर भय भयउ बिसेखा ॥२॥ उत्तम सुवर्ण का थाल हाथ में शोभित है,प्रसन्नतासे शिवजी को परखने (आरती उतारने) चली । जब रुद्र का भीषण रूप देखा, तब स्त्रियों के हृदय में बहुन ही डर उत्पन्न हुआ ॥२॥ स्त्रियों का अयथार्थ भय भयानक रसामास' है !