पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१६२

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. प्रथम सोपान, बालकाण्डे । १०६ दो-तेहि अवसर नारद सहित, अरु रिषि-सप्त समेत । समाचार सुनि तुहिन-गिरि, गवने तुरत निकेत ॥६॥ उसी समय नारदजी के सहित सप्तर्षियों को साथ लेकर हिमवान यह खबर सुन कर तुरन्त घर में गये | चै-तब नारद सबही समुझावा । पूरब-कथा-प्रसङ्ग सुनावा॥ मैना सत्य सुनहु मम बानी । जगदम्बा तव सुता भवानी ॥१॥ तब नारद जी ने सभी को समझाया और पूर्वजन्म के कथा का प्रसङ्ग सुनाया। उन्होंने कहा-हे मैना ! मेरी सच्ची बात सुनो, तुम्हारी कन्या जगदम्बा भवानी है ॥॥ अजा अनादि-सक्ति अबिनासिनि । सदा सम्भु अरघड-निवासिनि । जग-सम्भव-पालन-लय कारिनि । निज-इच्छा लीलाबपुधारिनि॥२॥ जन्म न लेनेवाली और कभी नाश न होनेवाली आदि शक्ति सदा शिवजी की श्रद्धाङ्गिनी हैं। संसार को उत्पन्न, पालन और नाश करनेवाली तथा अपनी इच्छा से खेल के लिये शरीर धारण करनेवाली हैं ॥२॥ जनमी प्रथम दच्छ-गृह जाई । नाम सती सुन्दर तनु पाई ॥ तहउँ सती सङ्करहि बिबाहौं । कथा प्रसिद्ध सकल जग माहीं ॥३॥ पहले जाकर दक्ष के घर में पैदा हुई, वहाँ इनका सती नाम था और इन्होंने सुन्दर शरीर पाया था । वहाँ भी सती शिवजी को ब्याही थी। यह कथा सारे जगत् में विख्यात है ॥३॥ एक बार आवत सिव सङ्गा । देखेड़ रघुकुल कमल पतङ्गा ॥ भयउ मोह सिब कहा न कीन्हा । भ्रम बस बेष सोय कर लीन्हा ॥४॥ एक बार शिवजी के साथ श्राते हुए इन्होंने रघुकुल रूपी कमल के सूर्य को देखा । इनके मन में अशान हुश्रा। शिवजी का कहना नहीं माना। भ्रम में पड़ कर सीता का रूप बनाया ॥m हरिगीतिका-छन्द । सिय बेष सती जो कीन्ह तेहि, अपराध सङ्कर परिहरी । हर बिरह जाइ बहोरि पितु के, जग्य जोगानल जरी। अब जनमि तुम्हरे भवन निजपति, लागि दारुन तप किया। अस जानि संसय तजहु गिरिजा, सर्वदा सङ्कर प्रिया ॥१२॥ सती ने जो सीताजी का रूप बनाया, इस अपराध शिवजी ने उन्हें त्याग दिया। फिर महादेवजी के वियोग से पिता के यज्ञ में जाकर सती योगाग्नि में जल गई। अब तुम्हारे घर