पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१६८

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प्रथम सोपान, बोलकाण्ड । ११५ तब जनमेउ षट-बदन-कुमारा । तारक असुर' समर जेहि मारा ॥ आगम निगम प्रसिद्ध पुराना । षट-मुख जनम सकल जग जाना ॥४॥ तब छः सुखवाले (स्वामिकार्तिक ) पुत्र का जन्म हुआ, जिन्होंने संग्राम में तारकासुर को मारा। षडानन का जन्म वेद, शास्त्र, पुराणों में विख्यात है और सम्पूर्ण संसार जानता है॥४॥ हरिगीतिका-छन्द । जग जान नमुख जनम करम प्रताप पुरुषारथ महा। तेहि हेतु मैं वृषकेतु-सुत कर, चरित सञ्छेपहि कहा ॥ यह उमा-सम्भु बिबाह जे नर, नारि कहहिँ जे गावहीं। कल्यान काज बिबाह मङ्गल, सर्बदा सुख पावहीं ॥१०॥ स्वामिकार्तिक के जन्म, कर्म, प्रताप और महान् पुरुषार्थ को संसार जानता है । इसलिये शिवजी के पुत्र का चरित्र मैंने संक्षेप में ही वर्णन किया है। यह शिव और पार्वतीजी का विवाह जो स्त्री-पुरुष कहेंगे, जो गायेंगे, वे विधाहादि कल्याण कार्य में सदा मङ्गल और सुख दो-चरित-सिन्धु गिरिजारवन, बेद न पावहिँ पार । बरनइ तुलसीदास किमि, अति मति-मन्द गँवार ॥१०॥ पार्वती रमण का चरित्र समुद्र है, वेद भी पार नहीं पाते । उसको अत्यन्त मंद-बुद्धि गवार तुलसीदास कैसे वर्णन कर सकता है ? ॥१०३॥ कविजी 'शिव-पार्वती का चरित्र वर्णन करने में अशक्यता प्रदर्शित करने के लिये अपने को अत्यन्त मन्द-बुद्धि गँवार कहते हैं । इस कथन में उकाक्षेप और विचित्र अलंकार की ध्वनि है। चरित्र वर्णन कर फिर उसले निषेद करना उक्ताक्षेप है और अत्यन्त मतिमन्द कह कर अपने को गवार बनाना, इससे श्रेष्ठ वक्ता होने की इच्छा रखना विचित्र है। चौ०-सम्भु चरित सुनि सरस सुहावा । अरद्वाज मुनि अति सुख पावा ॥ बहु लालसा कथा पर बाढ़ी। नयन- -नीर रोमावलि ठाढ़ी ॥१॥ शिवजी का सुहावना और रसीला चरित्र सुन कर भरद्वाज मुनि बहुत ही प्रसन्न हुए। . बड़ी लालसा कथा पर बढ़ी, उनकोआँखों में जल भर आया और रोमावलियाँ खड़ी होगई ॥२॥ प्रेम बिबस मुख आव न बानी । दसा देखि हर मुनि-ज्ञानी ॥ अहो धन्य तवं जनम मुनीसा । तुम्हहिँ प्रोन सम प्रिय गौरीसा ॥२॥ प्रेम के आधीन होकर मुख से बात नहीं निकलती है, उनकी दशा देखकर. ज्ञानी मुनि याज्ञवल्क्यजी हर्षित हुए। उन्होंने कहा-हे मुनीश्वर ! आपका जन्म धन्य है, आप को गौरीपति-शकरजी प्राण के समान प्यारे हैं ॥२॥ पावैगे॥१७॥ 2