पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१७

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दी होगी। पं० रणछोड़लाल का वक्तव्य इतिहास से विरुद्ध होने के कारण विश्वाल के योग्य नहीं है। च्यासजी ने अपनी जीवनी में चित्र के विषय में लिखा है कि "इस चित्र को रजिस्टरी हुई है, बिना हमारी आज्ञा कोई न छापे" आप की इस अनुदारता पर हंसी आती है और घृणा भी होती है। जिस महापुरुष के दर्शन की लाससा हिन्दू-समाज के अतिरिक्त कितने ही विदेशीय सजनों के हृदय में वर्त. मान है, उनके चित्र को इस प्रकार प्रतिवन्ध के साथ प्रकाशित करना संकीर्णता की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है ? काशी-नागरीप्रचारिणी सभा को सहस्रशः धन्यवाद है कि उसने इस चित्र को चतुर चित्रकार द्वारा रोगीपन का दोष दूर फराकर बड़े साइज़ में प्रकाशित किया है। उसकी एकरंग की प्रतिलिपि (असली चित्र के अनुसार) ज्ञानमंडल कार्यालय ने और रंगीन आवृत्ति माधुरी ने प्रकाशित की है । इस चित्र के एक प्रधान दोष पर चित्रकार और समाने कुछ ध्यान नहीं दिया, वह दर्शकों के लिये भ्रमोत्पादक हो सकती है। सिर पर शिखा और छोटे छोटे चाल दिखाये गये हैं, वे ऐसे जान पड़ते हैं मानों गोस्वामीजी फूलदार कनटोप दिये हों। गोस्वामीजी वैष्णव थे, वैष्णवों में बहुत काल से यह रीति प्रचलित है कि वे या तो शिखा के अतिरिक्त सिर दाढ़ी और मूंछ के बाल साथ ही बनवाते हैं और रखते हैं तो सब साथ ही, जैसा कि गोवामीजी का प्रथम चित्र है । जब दाढ़ी मूंछ में वाल की चूँटिया नहीं हैं तब सिर पर उन्हें दिखाना भयुक्त है और असली चित्र में ऐसा प्रकट भी नहीं होता है। हम लोगों ने प्रवीण चित्रकार द्वारा इस दोष को दूर कराकर रंगीन चिन्न प्रकाशित किया है। इसमें सन्देह नहीं कि खंख्या,१ और २ के दोनों चित्र गोखामी तुलसीदासजी के हैं, उनमें अन्तर केवल अवस्था भेद का है। (३) तीसरा चित्र ग्रियर्सन साहब ने सङ्गविलास प्रेस की रामायण में पहले पहल प्रकाशित कराया था, उसी के आधार पर वह अन्यान्य प्रेसों में भी मुद्रित हुआ है । यह ऊपर के दोन चित्रो से ठीक मिलता नहीं, इससे कल्पित होने का सन्देह होता है, किन्तु प्रियर्सन साहब की खोज सर्वथा उपेक्षणीय नहीं है । कदाचित् नवे वर्ष की उमर में अत्यन्त वृद्धावस्था के कारण शरीर स्थल हो गया हो उस समय का यह चित्र लिया हो इससे मिलान न होता हो। (४) रति विलाप (रंगीन ) पृष्ठ ६६ (५) शिव-पार्वती सम्बाद (एकरंगा) पृष्ठ १३१ (६) अहल्या तरण (तीनरंगा) पृष्ठ २११ (७) पुष्प वाटिका (रंगीन ) पृष्ठ २३१ (E) परशुराम भागमन ( एकरंगा) पृष्ठ २७३ (8) गहातरण (एकरंगा ) पृष्ठ ४६८ (१०) चित्रकूट-निवाल (तीनरंगा) पृष्ठ ४88 (११) अनिमिलन (तीनरंगा) पृष्ठ ६८४ (१२) शवरी-मिलाप (तीनरंगा) पृष्ठ ७३१ (१३) पाली सुग्रीव युद्ध (एफरंगा) पृष्ठ ७५७ (१४) वर्षा-वर्णन (एकरंगा) पृष्ठ ७६२ (१५) समुद्रोग्लंघन (एकरंगा) पृष्ठ ७३२ (१६) अशोक वाटिका (तीनरंगा) पृष्ठ ७६५ (१७) मन्दोदरी-प्रार्थना (एकरंगा) पृष्ठ ८६६ (१८) रोमसन्देश ( एकरंगा) पृष्ठ 88 (१४) रामराज्य (तीनरंगा ) पृष्ठ १०११