पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१७४

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । चौ०-जदपिजोषिताअनअधिकारी । दासी मन क्रम बचन तुम्हारी ॥ गूढउं तत्व न साधु दुरावहिँ । आरत अधिकारी जहँ पावहिं ॥१॥ यद्यपि स्त्रियाँ अनधिकारिणी हैं, तो भी मैं मन, कर्म और वचन से श्रापकी दासी हूँ। सज्जन लोग छिपी हुई वास्तविकता (सारवस्तु) को नहीं छिपाते, जहाँ वे अातुर अधिकारी पाते हैं ॥१॥ सभा की प्रति में 'नहिँ अधिकारी' पाठ है। अति आरति पूछउँ सुरराया । रघुपति कथा कहहु करि दाया ॥ प्रथम सा कारन कहहु बिचारी । निर्गुन-ब्रह्म सगुन-अपु-धारी ॥२॥ हे देवराज ! मैं बड़ी दोनता से पूछती हूँ, दया कर के रघुनाथजी की कथा कहिए । पहिले वह कारण विचार कर वर्णन कीजिए कि निगुण ब्रह्म शरीर धारण कर सगुण कैसे हुए १ ॥२॥ पुनि प्रभु कहहु राम अवतारा । बालवरित पुनि कहहु उदारा ॥ कहहु जथा जानकी बिबाही । राज तजा से दूषन काही ॥ ३॥ हे प्रभो ! फिर रामचन्द्रजी का जन्म कहिए, फिर श्रेष्ठ वाललीला वर्णन कीजिए । जिस प्रकार जानकी से विवाह हुआ वह कहिए और राज्यत्याग किया वह किसका दोष है ? ॥३॥ बन बसि कीन्हे चरित अपारा । कहहु नाथ जिमि रावन मारा ॥ राज वैठि कीन्ही बहु लीला । सकल कहहु सङ्कर सुभ-सीला ॥ ४ ॥ वन में रह कर अपार चरित्र किए, हे नाथ ! जिस तरह रावण को मारा, वह कहिए। राज्य पर बैठ कर बहुत प्रकार की लालाएँ की, हे सुख के निधान शङ्करजी ! ये सब कहिए ॥४॥ दो-बहुरि कहहु करुनायतन, कीन्ह जो अचरज राम । प्रजा सहित रघुबंस-मनि, किमि गवने निज-धाम ॥११०॥ हे दयानिधे ! फिर रघुकुल-भूषण रामचन्द्रजी ने जो आश्चर्य किया वह कहिए कि प्रजात्रों के सहित अपने धाम (वैकुण्ठ ) को कैसे गये ? ॥११०।। चौ०-पुनि प्रभुकहहु सातत्व बखानी । जेहि विज्ञान मगन मुनिज्ञानी । भगति ज्ञान विज्ञान विरागां । पुनि सबबरनहु सहित बिभागा॥१॥ . हे प्रभो ! फिर उस यथार्थता को बखान कर कहिए जिस विशेषज्ञान में ज्ञानी मुनि मन रहते हैं। फिर भक्ति, ज्ञान, विज्ञान और वैराग्य सब को अलग अलग वर्णन कीजिए ॥१॥