पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१७७

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रामचरित मानस । जिन्ह हरिभगति हृदय नहिँ आनी। जीवत सव समान ते प्रानी । जो नहि करइ राम-गुन-गाना । जीह सा दादुर-जीह समाना ॥३॥ जिन्होंने हृदय में भगवान की भक्ति नहीं ले पाई, वे प्राणी मुर्दे के समान जीते हैं। जो रामचन्द्रजी के गुणों का गान नहीं करती, वह जीभ मेढक की जिह्वा (शन्य) के बराबर है ॥३॥ कुलिस-कठोर निठुर सोइ छाती । सुनि हरि-चरित न जो हरपाती । गिरिजा सुनहु राम के लीला । सुर-हित दनुज-विमोहन-सोला ॥४॥ वह छाती बज्र के समान कठोर और निर्दयी है जो भगवान का चरित्र सुन कर हर्पित : न होती हो। हे गिरिजा ! सुनो, रामचन्द्रजी की लीला देवताओं का कल्याण करनेवाली और दैत्यों को अधिक अज्ञान में डालनेवाली है ॥४॥ एक ही रामलीला का देवों की हितकारिणी और दैत्यों को अहितकारिणी होना 'प्रथमं व्याघात अलंकार है। दो०-रामकथा सुरधेनु सम, सेवत सब सुख-दानि । सत्तसमाज सुरलोक सब, को न सुनइ अस जानि ॥११३॥ रामचन्द्रजी की कथा कामधेनु के समान सेवा करने से सब को सुख देनेवाली है। सब सज्जन-मण्डली देवलोक है, (जहाँ पर यह कामधेनु निवास करती है) ऐसा जान कर कौन न सुनेगा ? (सभी श्रवण करेंगे) ॥११३ ॥ चौ-रामकथा सुन्दर करतारी । संसय-बिहग उड़ावनिहारी ॥ रामकथा कलि-बिटप कुठारी । सादर सुनु गिरिराज-कुमारी ॥१॥ सन्देह रूपी पक्षी को उड़ाने के लिए रामचन्द्रजी की कथा सुन्दर हाथ की ताली है। हे पर्वतराज की कन्या ! श्रादर-पूर्वक सुनो, 'कलिरूपी वृक्ष को काटने के लिए राम- कथा कुल्हाड़ी है ॥१॥ राम नाम गुन चरित सुहाये । जनम करम अगनित सुति गाये ॥ जथा अनन्त राम भगवाना । तथा कथा कीरति गुन नाना. ॥२॥ रामचन्द्रजी के सुन्दर नाम, गुण, चरित्र, जन्म और कर्म अनेक प्रकार श्रुतियों ने गान किया है । जिस तरह भगवान् रामचन्द्रजी अनन्त हैं, उसी तरह उनकी कथा, नामवरी और गुण अपार हैं ॥२॥ तदपि जथा-खुत जसि मति मारी। कहिहउँ देखि प्रीति अति तारी॥ उमा प्रस्न तव सहज सुहाई । सुखद सन्त सम्मत माहि भाई॥३॥ तो भी जैसा सुना है और जैसी मेरी बुद्धि है तदनुसार तुम्हारी अतिशय प्रीति देख कर कहूँगा। हे उमा ! तुम्हारे प्रश्न सहज सुहाउने, सन्त-सम्मत, सुखदायक और मुझे प्रिय . खगनेवाले हैं ॥३॥