पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१८७

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रामचरित मानसं । चौ०-साइ जस गाइ भगतमव तरहीं। कृपासिन्धु जन-हित तनु धरहाँ । राम-जनम के हेतु अनेका । परम बिचित्र एक ते एका ॥१॥ वही यश गान कर भक्त लोग संसार से पार पाते हैं, कृपासिन्धु भक्ती ही के लिए शरीर धरते हैं। रामचन्द्रजी के जन्म के अनेक कारण है, उनमें एक से एक अत्यन्त विलक्षण हैं ॥१॥ जनम एक दुइ कहउँ बखानी । सावधान सुनु सुमति भवानी ॥ द्वारपाल हरि के प्रिय दोज । जय अरु बिजय जान सब कोऊ ॥२॥ हे सुन्दर बुद्धिवाली भवानी ! सावधानी से सुनो, मैं एक और दो तीन ) जन्म का कारण बखान कर कहता हूँ। जय और विजय को सब कोई जानते हैं कि ये दोनों भगवान के प्रिय द्वारपाल ( दरबान ) हैं ॥२॥ बिन साप तें दूनउँ भाई । तामस असुर देह तिन्ह पाई ॥ कनककसिपु अरु हाटकलोचन । जगतविदित सुरपति मद-मोचन॥३॥ ब्राह्मण के शाप । उन दोनों भाइयों ने दैत्य का तामसी शरीर पाया। हिरण्यकशि और हिरण्याक्ष इन्द्र के गवे को छुड़ानेवाले जगप्रसिद्ध योद्धा थे ॥ ३ ॥ बिजई समर बीर बिख्याता । धरि बराह वपु एक निपाता ॥ होइ नरहरि दूसर पुनि मारा । जन ग्रहलाद सुजस विस्तारा ॥४॥ एक (हिरण्याक्ष ) युद्ध-विजयी प्रसिद्ध योद्धा को शूकर का शरीर धर कर नाश किया।' फिर दूसरे (हिरण्यकशिपु) को नृसिंह होकर मारा और भक प्रहाद का सुन्दर यश फैलाया॥४॥ भक्त प्रहाद की कथा इसी काण्ड में २५ वे दोहे के आगे दूसरी चौपाई के नीचे और ७. वे दोहे के आगे प्रथम चौपाई के नीचे देखो। दो-भये निसाचर जाइ तेइ, महाबीर बलवान। कुम्भकरन रावन, सुभट, सुर-बिजई जग जान ॥१२२।। के हो जा कर पड़े बलवान योद्धा राक्षस हुए, देवताओं को जीतनेवाले शूरवीर कुम्भ कर्ण और रावण को संसार जानता है । १२२ ॥ चौ०-मुकुत न भये हते अगवाना । तीनि जनम द्विज बचन प्रमाना । एक बार तिन्ह के हित लागी । घरेउ सरीर भगत अनुरागी ॥१॥ भगवान के मारने पर भी मुक नहीं हुए, क्योंकि ब्राह्मण के वचन का प्रमाण (शाप तीन जन्म के लिए था। एक बार उनके कल्याण के लिए भक्तों पर प्रेम करनेवाले हरिने शरीर धारण किया ॥१॥