पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१९०

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड मुनि गति देखि सुरेस डराना । कामहि बोलि कीन्ह सनमाना ॥ सहित सहाय जाहु मम हेतू । चलेउ हरषि हिय जलचर केतू ॥३॥ सुनि को दशा देख कर इन्द्र डर गया, उसने कामदेव को बुला कर उसका श्रादर-सत्कार किया और कहा-मेरे कल्याण के लिए आप अपनी सहायक सेना समेत जाइये। मन में प्रसन्न होकर मीनकेतु चला ॥३॥ सुनासीर मन महँ असि त्रासा । चहत देवरिपि मम पुर बासा । जे कामी लोलुप जग माहौँ । कुटिल काक इव सबहि डेराहीं ॥४॥ इन्द्र के मन में ऐसा डर हुआ कि देवर्षि नारद मेरे नगर का निवास (अमरावती का राज्य ) चाहते हैं । जो संसार में विषयी और लालची हैं, वे कपटी कौए की तरह सब से डरते हैं ॥ ४॥ , दो०-सूख हाड़ लेइ भाग सठ, स्वान निरखि मृगराज । लीनि लेड जनि जानि जड़, तिमि सुरपतिहि न लाज ॥१२॥ जैसे सिंह को देख कर दुष्ट कुत्ता सूखी हड्डी लेकर भागे । वह मूर्ख,यह समझे कि कहीं मृगराज उसे छीन न ले, वैसे ही इन्द्र को लाज नहीं है ॥१२॥ चौ० तेहि ओखमहि मदन जब गयऊ । निज माया बसन्त निरमयऊ । कुसुमित बिबिध बिटप बहु रङ्गा । कूजहिँ कोकिल गुजहिँ भृङ्गा॥१॥ जब कामदेव उस.आश्रम में गया, तब अपनी माया से वसन्त ऋतु का निर्माण किया । अनेक प्रकार के वृक्षों पर बहुत रङ्ग के फूल फूले हैं, कोयल घोल रही हैं और भौरे गूज रहे हैं ॥१॥ यहाँ कूजहिँ और गुञ्जहिँ शन्द पृथक हैं; किन्तु अर्थ दोनों का एक 'अर्थावृत्ति दीपक, अलंकार' है। चली सुहावनि त्रिबिध बयारी । काम-कृसानु बढ़ावनि हारी। रम्भादिक सुर-नारि नश्रीना । सकल असमसर-कला-प्रबीना ॥२॥ कामाग्नि को बढ़ानेवाली तीनों प्रकार की (शीतल, मन्द, सुगन्धित) सुहावनी हवा चली | रम्भा आदि देवताओं की नवयौवना स्त्रियाँ जो सब तरह से कामदेव की कलाओं में चतुर हैं ॥२॥ करहिँ गान बहु तान तरङ्गा । बहु बिधि क्रीड़हिँ पानि-पतङ्गा ॥ देखि सहाय मदन हरषाना । कीन्हेसि पुनि प्रपञ्च विधि नाना ॥३॥ बहुत तरह के लहराते हुए तान से गान करती हैं और अनेक प्रकार हाथ रूपी पतनों के करती (हाव भाव दिखाती) हैं । अपनी सहायक मण्डली को देख कर कामदेव प्रसन्न हुआ, फिर उसने नाना भाँति के छल (मुनि की समाधि भङ्ग करने के लिए) किये ॥३॥ 1