पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१९५

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१४० रामचरितमानस । राजकन्या कैसे मिलेगी ? उसके मिलने की इच्छा बलवती होना 'चिन्तासारी- भाव' है। करउँ जाइ सोइ जतन बिचारी । जेहि प्रकार माहि बरई कुमारी ॥ जप तप कछु न होइ तेहि काला । हे विधि मिलइ कवन विधि बाला Man जाकर वही उपाय विचार कर कऊँ, जिस तरह यह कन्या मुझे घर बनावे। इस समय जपतप कुछ हो नहीं सकता, हे विधाता ! किस प्रकार वह कन्या मिलेगी ? ॥४॥ कन्याप्राप्ति में विलम्ब की अक्षमता 'उत्सुकता सच्चारीमाव' है दो-एहि अवसर चाहिय परम, सोभा रूप बिसाल । जो बिलोकि रीझइ कुँअरि, तब मेलइ जयमाल ॥१३१॥ इस समय बड़ी छविधाला महान रूप चाहिए, जिसे देख कर राजकुमारी मोहित हो, तब जयमाल पहनावेगी। १३१ ।। चौ०-हरि सन माँगउँ सुन्दरताई। होइहि जात गहरु मोहि भाई । भोरे हित हरि सम नहि कोज । एहि अवसर सहाय सेाइ होऊ ॥१॥ भगवान से सुन्दरता माँगू, पर भाई ! जाने में मुझे बड़ी देरी होगी। मेरा हित भगवान के समान कोई नहीं है, इस समय वे ही मेरे सहायक होगे ॥१॥ बहु बिधि बिनय कीन्ह तेहि काला । प्रगटेउ प्रभु कौतुकी कृपाला । प्रभु बिलोकि मुनि नयन जुड़ाने । होइहि काज हिये हरषाने ॥२॥ बहुत तरह उस समय प्रार्थना की, कौतुको कृपालु स्वामी प्रकट हुए । भगवान् को देख कर मुनि की आँखें ठंढी हुई, मन में प्रसार हुए कि अब काम होगा ॥२॥ अति आरति कहि कथा सुनाई। करहु कृपा करि होहु सहाई ॥ आपन रूप देहु प्रभु माही। आन माँति नहि पावउँ ओही ॥३॥ बड़ी दीनता, से सब कथा कह सुनाई और कहा कि कृपा कर के मेरी सहायता कीजिए। हे स्वामिन् ! अपना रूप मुझ को दीजिए, दूसरे प्रकार से उसको न पाऊँगा ॥३॥ जेहि बिधि नाथ होइ हित मारा । करहु से बेगि दास मैं तारा । निज-माया बल देखि बिसाला । हिय हँसि वाले दीनदयाला Nan हे नाथ ! जिस तरह मेरा कल्याण हो, वही जल्दी कीजिए । मैं श्राप का दास हूँ। अपनी माया का विशाल बल देख कर दीनदयाल मन में हँस कर बोले ॥४॥ दो-जेहि बिधि होइहि परम हित, नारद सुनहु तुम्हार । सोइ हम करवं न आन कछु, बचन न मृषा हमार ॥१३२॥ हे नारद ! सुनो, जिस तरह तुम्हारा परम-कल्याण होगा; हम वही करेंगे और कुछ नहीं, हमारा वचन झूठ न होगा ॥ १३२ ॥ 1