पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रथम सोपान, बालकाण्ड । १४५ कपि आकृति तुम्ह कीन्हि हमारी। करिहहिँ कीस सहाय तुम्हारी ॥ मम अपकार कीन्ह तुम्ह भारी । नारि-बिरह तुम्ह होब दुखारी ॥४॥ तुमने हमारा चेहरा बन्दर का कर दिया, वे ही बन्दर तुम्हारी सहायता करेंगे। तुमने मेरी बड़ी हानि (बुराई ) की, इसलिये तुम स्त्री के वियोग से दुखी होगे ॥४॥ दो०-साप सीस धरि हरषि हिय, प्रभु बहु बिनती कीन्ह । निज-माया के प्रबलता, करषि कृपानिधि लीन्ह ॥१३॥ प्रसन्न मन से शाप शिरोधार्य करके प्रभु ने बहुत बिनती को। कृपानिधान भगवान् ने अपनी माया की जोरावरी खींच ली ॥ १३७ ।। चौ०-जब हरि माया दूरि निवारी । नहिँ तहँ रमा न राजकुमारी ॥ तय मुनि अति सभीत हरि-चरना । गहे पाहि प्रनतारति हरना ॥१॥ जब भगवान ने माया दूर कर दी, वहाँ न लक्ष्मी है न राजकुमारी, तव मुनि अत्यन्त भयभीत हो वैकुण्ठनाथ के चरणों को पकड़ लिया और बोले कि हे शरणागतों के दुःख हरनेवाले महराज ! मेरी रक्षा कीजिए॥१॥ अपने दुष्कृत्य को समझ कर सहसा नारदजी के मन में भय से चित्तविक्षप होना कि अरे ! मैं ने घोर अनर्थ किया, 'त्रास संचारीभाव है। मृषा होउ मम साप कृपाला । मम इच्छा कह दोनदयाला ॥ दुर्बचन कहे बहुतेरे । कह मुनि पाप मिटिहि किमि मेरे ॥२॥ हे कृपालु ! मेरा शाप झूठ हो जाय, दीनदयाल भगवान ने कहा-ऐसी हमारी इच्छा है (वह असत्य न होगा)। मुनि ने कहा-स्वामिन् ! मैंने आपको बहुतेरे दुर्वचन कहे, मेरे वे पाप कैसे मिटेगे ॥२॥ जपहु जाइ सङ्कर सत-नामा। होइहि हृदय तुरत बिस्रामा । कोउ नहि सिव समान प्रिय मोरे । असि परतीति तजहु जनि भारे ॥३॥ भगवान् ने कहा-जाकर शङ्करजी का सत् (ट) नाम जपिये, तुरन्त हृदय में शान्ति होगी। शिवजी के समान मेरा कोई प्रिव नहीं हैं। ऐसा विश्वास भूल कर भी न छोड़ना ॥३॥ इन वाक्यों से यह श्वनि व्यजित होती है कि तुमने शिवजी की बात पर विश्वास न करके बड़ी भूल की, इसी से क्लेश भोगना पड़ा। अब कमी ऐसी भूल न करना। जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी । सो न पाव मुनि भगति हमारी । अस उर धरि महिं बिचरहु जाई। अब न तुम्हहिँ माया नियराई net हे मुनि ! जिस पर शिव की दया नहीं करते, वह हमारी भक्ति नहीं पाता, ऐसा हृदय रखकर जाओ धरती पर विचरण करो। अब माया तुम्हारे समापन आवेगी ॥४॥