पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२०१

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रामचरित-मानस । १४६ दो बहु बिधि भुनिहि प्रबोधि प्रभु, तब भये अन्तरधान । सत्यलोक नारद चले, करत राम-गुन-गान ॥१३॥ बहुत तरह मुनि को समझा कर जब भगवान् अदृश्य हो गये, तय नारदजी तमचन्द्रजी का गुण गान करते हुए सत्यलोक को चले ॥१३॥ चौ०-हर-गन मुनिहि जात पथ देखी। बिगत माह मन हरष बिसेखी ॥ अति सभीत नारद पहिं आये । गहि-पद आरत बैन सुनाये ॥१॥ रुद्र-गणों ने नारदजी को मन में अधिक प्रसन्न और अज्ञान रहित रास्ते में जाते देखा । अत्यन्त डरते हुए नारदजी के पास आये, उनके पाँव पकड़ कर दीन बचन सुनाये ॥१॥ हर-गन-हम न विप्र मुनिराया । बड़ अपराध कीन्ह फल पाया। साप अनुग्रह करहु कृपाला । बोले नारद दीनदयाला ॥२॥ हे मुनिराज ! हम लोग ब्राह्मण नहीं शिवजी के अनुचर हैं, जैसा बड़ाअपराधाकिया वैसा फल पाया। हे कृपालु ! शाप पर दया कीजिये। वीनों पर दया करनेवाले नारदजी बोले ॥२॥ निसिचर जाइ होहु तुम्ह दोऊ । बैभव बिपुल तेज बल होऊ ॥ भुज-बल बिस्व जितब तुम्ह जहिआ। धरिहहि बिष्नु मनुज तनु तहिआ॥३॥ तुम दोनों जाकर राक्षस होगे और अपार ऐश्वर्य, प्रताप, बल होगा। जिस दिन तुम अपनी भुजाओं के बल से संसार को जीत लोगे, उस समय विष्णु भगवान मनुष्य का शरीर धारण करेंगे ॥३॥ समर भरन हरि हाथ तुम्हारा । होइहहु मुकुत न पुनि संसारा ॥ चले जुगल मुनि-पद सिर नाई। भये निसाचर कालहि पाई ॥४॥ भगवान् के हाथ से तुम्हारी संग्राम में मृत्यु होगी, तब मुक्त हो जाओगे, फिर संसार में न पड़ोगे। वे दोनो मुनि के चरण में सिर नवाकर चले और काल पाकर राक्षस हुए ॥४॥ दो-एक कलप एहि हेतु प्रभु, लीन्ह मनुज अवतार । सुर-रजन सज्जन-सुखद, हरि भजन-भुबि-भार ॥१३॥ देवताओं को प्रसन्न करनेवाले, सज्जनों को सुखदायक, पृथ्वी का बोझ दूर करने के लिये एक कल्प में इस कारण विष्णु भगवान् ने मनुष्य का अवतार लिया ॥१३॥ याज्ञवल्क्यजी कहते हैं-हे भरद्वाज सुनिये, शिवजीने पूर्व में कहा कि मैं एक और को (तीन) जन्म का कारण कहता हूँ । एक कल्प में ब्राह्मण के शाप से जय-विजय रावण हुए। दूसरे कल्प में जलंधर राषण हुआ और तीसरे कल्प में नारदजी के शाप से शिव-गण रावण हुए। इन तीनों जन्म के कारणों का संक्षेप में यहाँ पर्यन्त वर्णन हुआ। 1